इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सहारनपुर दंगा मामले में सांसद चंद्रशेखर की याचिकाएं खारिज कीं

प्रयागराज, 18 दिसंबर । इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने नगीना से सांसद और भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर द्वारा 2017 के सहारनपुर दंगों से जुड़े मामलों में दाखिल याचिकाओं को खारिज कर दिया है। चंद्रशेखर ने इन दंगों के संबंध में दर्ज चार प्राथमिकियों (एफआईआर) के तहत चल रहे मुकदमों को रद्द करने की मांग की थी।

न्यायमूर्ति समीर जैन ने अपने आदेश में कहा कि यदि घटनाओं का दायरा अलग-अलग हो तथा अपराध अलग स्थानों और अलग समय पर हुए हों, तो केवल इस आधार पर प्राथमिकियां रद्द नहीं की जा सकतीं कि वे एक ही दिन दर्ज की गई थीं। अदालत ने उच्चतम न्यायालय के पूर्व के निर्णयों का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि यदि किसी मौजूदा प्राथमिकी से अलग संस्करण सामने आता है और नए तथ्यों के आधार पर जांच की आवश्यकता होती है, तो दूसरी प्राथमिकी दर्ज की जा सकती है।

उच्च न्यायालय ने कहा कि इस मामले में भीम आर्मी से जुड़ी भीड़ ने कई घंटों तक अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग समय पर आगजनी और तोड़फोड़ की थी। अदालत ने माना कि यद्यपि ये घटनाएं एक ही व्यापक मुद्दे से जुड़ी प्रतीत होती हैं, लेकिन इनके स्वरूप और स्थान अलग थे।

अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि याचिकाकर्ता एक सांसद हैं और कथित अपराध उनकी पार्टी से जुड़े कार्यकर्ताओं द्वारा किए गए बताए गए हैं। ऐसे में अपर महाधिवक्ता की दलील के अनुसार यह मामला किसी बड़े षड्यंत्र की ओर भी इशारा कर सकता है, जिसे पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता।

न्यायालय ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के निर्मल सिंह कहलोन मामले में दिए गए विचारों को ध्यान में रखते हुए इन प्राथमिकियों के तहत जारी मुकदमों को रद्द करना उचित नहीं होगा।

चंद्रशेखर ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) की धारा 528 के तहत चार प्राथमिकियों को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। उनके खिलाफ पहली प्राथमिकी नौ मई, 2017 को दर्ज की गई थी, जिसमें आरोप था कि उन्होंने 250-300 लोगों की भीड़ के साथ सड़क जाम किया, प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों पर अवैध हथियारों से हमला किया और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया।

चंद्रशेखर के वकील ने दलील दी थी कि चारों प्राथमिकियां एक ही दिन दर्ज हुईं और एक ही भीड़ तथा एक ही घटना से संबंधित थीं। उन्होंने टी.टी. एंटनी बनाम केरल सरकार और बाबूभाई बनाम गुजरात सरकार के मामलों में उच्चतम न्यायालय के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि समान तथ्यों पर दूसरी प्राथमिकी दर्ज करना कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है।

वहीं अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने अदालत में तर्क दिया कि घटनाएं अलग-अलग स्थानों पर हुईं और प्राथमिकियां अलग-अलग व्यक्तियों द्वारा दर्ज कराई गई थीं। उन्होंने कहा कि यदि कोई भीड़ एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर अलग-अलग अपराध करती है और संपत्ति को नुकसान पहुंचाती है, तो अलग-अलग प्राथमिकियां दर्ज की जा सकती हैं।

अदालत ने अपने निर्णय में कहा कि यद्यपि सभी घटनाएं नौ मई, 2017 को हुई थीं, लेकिन उनका स्थान और समय अलग-अलग था, इसलिए याचिकाओं में हस्तक्षेप का कोई आधार नहीं बनता।

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