संसद ने बीमा क्षेत्र में 100 प्रतिशत एफडीआई को मंजूरी दी

‘सबका बीमा सबकी रक्षा’ विधेयक पारित, सरकार का दावा—बीमा क्षेत्र को मिलेगा नया प्रोत्साहन

नयी दिल्ली, 17 दिसंबर । संसद ने बुधवार को बीमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की सीमा 74 प्रतिशत से बढ़ाकर 100 प्रतिशत करने के प्रावधान वाले विधेयक को मंजूरी दे दी। राज्यसभा ने ‘सबका बीमा सबकी रक्षा (बीमा कानूनों में संशोधन) विधेयक, 2025’ को ध्वनि मत से पारित कर दिया। इसके साथ ही विपक्ष द्वारा पेश सभी संशोधनों को खारिज कर दिया गया, जिनमें विधेयक को प्रवर समिति के पास भेजने का प्रस्ताव भी शामिल था। लोकसभा इस विधेयक को एक दिन पहले ही पारित कर चुकी थी।

विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि बीमा कानूनों में समय-समय पर संशोधन देश की आर्थिक जरूरतों और क्षेत्र के विकास को दर्शाते हैं। उन्होंने कहा कि अब तक बीमा कानूनों में 12 बार संशोधन हो चुके हैं और यह विधेयक आम जनता, किसानों और पॉलिसीधारकों की सुरक्षा को और मजबूत करेगा।

सीतारमण ने कहा कि 100 प्रतिशत एफडीआई की अनुमति दिए जाने से उन विदेशी कंपनियों के लिए भारत में निवेश का मार्ग खुलेगा, जिन्हें संयुक्त उपक्रम के लिए उपयुक्त साझेदार नहीं मिल पाते थे। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इससे रोजगार के अवसर घटेंगे नहीं, बल्कि बढ़ेंगे।

विपक्ष के इस आरोप को खारिज करते हुए कि सरकार विधेयक को जल्दबाजी में पारित करा रही है, वित्त मंत्री ने कहा कि इस विषय पर लगभग दो वर्षों तक व्यापक विचार-विमर्श किया गया। उन्होंने यह भी कहा कि बीमा प्रीमियम की राशि विदेशी कंपनियों के पास जाने संबंधी आशंकाएं निराधार हैं। बीमा क्षेत्र को खोलने से बेहतर प्रौद्योगिकी, आधुनिक उत्पाद और बेहतर सेवाएं सुनिश्चित होंगी, जिससे उपभोक्ताओं और बीमा एजेंटों दोनों को लाभ मिलेगा।

वित्त मंत्री ने सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा कंपनियों की सुरक्षा को लेकर किए गए प्रावधानों पर भी जोर दिया। उन्होंने बताया कि सार्वजनिक क्षेत्र की तीन बीमा कंपनियों को मजबूत करने के लिए 17 हजार करोड़ रुपये से अधिक की सहायता दी गई है, जिससे उनकी वित्तीय स्थिति में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। विधेयक के कानून बनने पर भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) को अधिक स्वायत्तता मिलेगी और उसे भी लाभ होगा।

विधेयक में यह स्पष्ट किया गया है कि एफडीआई 100 प्रतिशत होने के बावजूद बीमा कंपनी के शीर्ष पदों में से एक—अध्यक्ष, प्रबंध निदेशक या मुख्य कार्यकारी अधिकारी—भारतीय नागरिक होना अनिवार्य होगा। इसके अलावा, यह गैर-बीमा कंपनी के बीमा कंपनी में विलय का रास्ता भी खोलता है।

वित्त मंत्री ने बताया कि विधेयक का मसौदा राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के साथ साझा किया गया था। उन्होंने यह भी जानकारी दी कि बीमा योजनाओं में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए ‘बीमा सखी’ पहल शुरू की गई है, जिसके तहत अब तक करीब 2.20 लाख महिलाओं को प्रशिक्षित कर बीमा एजेंट के रूप में तैनात किया गया है।

विधेयक में पुनर्बीमा कंपनियों के लिए शुद्ध स्वामित्व निधि की आवश्यकता को 5,000 करोड़ रुपये से घटाकर 1,000 करोड़ रुपये करने का प्रस्ताव है। सरकार का कहना है कि इन सुधारों से ग्रामीण क्षेत्रों में भी वहनीय दरों पर बीमा कवरेज उपलब्ध हो सकेगा और दावों के निस्तारण की प्रक्रिया और अधिक सुगम होगी।

गौरतलब है कि यह विधेयक बीमा अधिनियम, 1938, एलआईसी अधिनियम, 1956 और बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण अधिनियम, 1999 में संशोधन के लिए लाया गया है, जिसका उद्देश्य बीमा क्षेत्र की वृद्धि को गति देना और पॉलिसीधारकों के हितों की बेहतर सुरक्षा सुनिश्चित करना है।


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