नये सभापति राधाकृष्णन के स्वागत के दौरान दोनों पक्षों में तीखी नोंकझोंक
नयी दिल्ली, एक दिसंबर (भाषा)। राज्यसभा में सोमवार को उस समय तीखी बहस छिड़ गई जब विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने नए उपराष्ट्रपति एवं राज्यसभा के सभापति सी. पी. राधाकृष्णन का स्वागत करते हुए उनके पूर्ववर्ती जगदीप धनखड़ के “अचानक और अप्रत्याशित” इस्तीफे का जिक्र किया। सत्तापक्ष के सांसदों ने इसे अनुचित बताते हुए जोरदार आपत्ति जताई और कहा कि यह अवसर ऐसे सवाल उठाने का नहीं था।
खरगे ने स्वागत भाषण में कहा कि कांग्रेस “संवैधानिक मूल्यों और सदन की परंपराओं” के प्रति प्रतिबद्ध है और कार्यवाही के निष्पक्ष संचालन में सहयोग करेगी। उन्होंने राधाकृष्णन के राजनीतिक परिवारिक पृष्ठभूमि का उल्लेख करते हुए उम्मीद जताई कि वे सदन में “दोनों पक्षों के बीच संतुलन” बनाए रखेंगे।
खरगे ने साथ ही कहा कि प्रधानमंत्री ने सदन के बाहर विपक्ष पर अप्रत्यक्ष हमला किया और उसका जवाब सदन में दिया जाएगा।
धनखड़ के इस्तीफे पर विवाद
खरगे ने कहा कि पूर्व सभापति जगदीप धनखड़ ने 21 जुलाई को स्वास्थ्य कारणों का हवाला देकर पद छोड़ा था, लेकिन उनका अचानक इस्तीफा “संसदीय इतिहास में असामान्य घटना” है। उन्होंने खेद जताया कि सदन को धनखड़ को औपचारिक विदाई देने का अवसर भी नहीं मिला।
इस टिप्पणी पर सत्तापक्ष भड़क उठा।
सत्तापक्ष का पलटवार
नेता सदन जे. पी. नड्डा ने कहा कि विपक्ष को यह याद रखना चाहिए कि उन्हीं ने धनखड़ के खिलाफ दो-दो बार अविश्वास प्रस्ताव लाया था।
नड्डा ने कहा—
“अगर अप्रासंगिक मुद्दे उठेंगे, तो हमें याद दिलाना पड़ेगा कि आपने पूर्व उपराष्ट्रपति के साथ कैसा व्यवहार किया था। यह पवित्र अवसर है, इसकी गरिमा बनाए रखनी चाहिए।”
संसदीय कार्य मंत्री किरेंन रीजीजू ने भी खरगे की आलोचना करते हुए कहा कि यह गंभीर और औपचारिक अवसर था, न कि राजनीतिक टिप्पणी करने का समय। उन्होंने कहा कि धनखड़ के खिलाफ विपक्ष द्वारा पेश किए गए अविश्वास प्रस्ताव की प्रति अब भी सरकार के पास मौजूद है।
बिहार–हरियाणा चुनावों पर भी तकरार
नड्डा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान का हवाला देते हुए कहा कि विपक्ष बिहार और हरियाणा में मिली हार से “दर्द में है” और सही समय आने पर इस पर चर्चा की जा सकती है।
प्रधानमंत्री ने सत्र शुरू होने से पहले मीडिया से कहा था कि विपक्ष हार को पचा नहीं पा रहा है और संसद को “हताशा निकालने का मंच” नहीं बनाना चाहिए।
उन्होंने यह भी कहा था—
“हार अवरोध का आधार नहीं होनी चाहिए और जीत अहंकार में नहीं बदलनी चाहिए। संसद ड्रामा के लिए नहीं, काम के लिए है।”
