कांग्रेस नेता ने कहा—सरकार का गोलमोल उत्तर आशा बहनों का अपमान
नयी दिल्ली, एक दिसंबर । लोकसभा में सोमवार को कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाद्रा ने आशा कार्यकर्ताओं को वेतन संहिता, 2019 के तहत औपचारिक कर्मचारी का दर्जा देने तथा उन्हें सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करने से जुड़ा सवाल उठाया। प्रियंका ने पूछा कि क्या आशा कार्यकर्ताओं को ईपीएफ, ईएसआई और मातृत्व अवकाश जैसी सुविधाओं का लाभ देने का कोई प्रस्ताव सरकार के पास है।
इस पर श्रम मंत्री मनसुख मांडविया ने लिखित जवाब में कहा कि ‘‘श्रम संविधान की समवर्ती सूची का विषय है’’ और केंद्र तथा राज्य सरकारें अपने-अपने क्षेत्राधिकार में संहिता के प्रावधान लागू करने में सक्षम हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि आशा कार्यकर्ता सामुदायिक स्वास्थ्य स्वयंसेवक होती हैं और कार्य/गतिविधि आधारित प्रोत्साहन पाने की हकदार हैं।
मांडविया ने बताया कि आशा कर्मियों को प्रति माह 3,500 रुपये का प्रोत्साहन मिलता है और उन्हें पांच लाख रुपये तक का बीमा कवरेज समेत कई अन्य सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जाती हैं।
प्रियंका गांधी ने यह भी पूछा कि क्या आशा, आंगनवाड़ी और मध्याह्न भोजन (एमडीएम) कार्यकर्ताओं के लिए समान वेतन और सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु किसी राष्ट्रीय आयोग के गठन का कोई प्रस्ताव है।
सरकार के जवाब पर असंतोष जताते हुए प्रियंका गांधी ने बाद में ‘एक्स’ पर पोस्ट कर कहा कि सरकार ने ‘‘गोलमोल जवाब’’ देकर आशा कार्यकर्ताओं का ‘‘अपमान’’ किया है। उन्होंने लिखा कि आशा बहनें देश के स्वास्थ्य तंत्र की रीढ़ हैं, लेकिन उन्हें न न्यूनतम वेतन मिलता है और न ही आवश्यक सामाजिक सुरक्षा।
प्रियंका ने आरोप लगाया,
“दिन-रात मेहनत करने वाली हमारी आशा बहनें अपने अधिकारों के लिए लंबे समय से संघर्ष कर रही हैं। वे सम्मानजनक मानदेय और गरिमापूर्ण पहचान चाहती हैं, लेकिन मोदी सरकार उन्हें स्थायी कर्मचारी नहीं मानती। संसद में मेरे सवाल पर सरकार ने मामले को टालने की कोशिश की—यह उनके श्रम और काबिलियत का अपमान है।”
कांग्रेस नेता ने मांग दोहराई कि आशा कार्यकर्ताओं को उचित वेतन, सामाजिक सुरक्षा और अधिकार सुनिश्चित किए जाएं, ताकि वे देश के स्वास्थ्य तंत्र में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका को सुरक्षित और सम्मानजनक तरीके से निभा सकें।
