नयी दिल्ली, 26 नवंबर – प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत ने संविधान दिवस के अवसर पर आयोजित उच्चतम न्यायालय समारोह में देश में एक समान राष्ट्रीय न्यायिक नीति की आवश्यकता पर जोर दिया। उनका कहना था कि विभिन्न मामलों में संवैधानिक अदालतों की राय में अप्रत्याशित मतभेद के कारण अनिश्चितता बढ़ रही है, और इसे कम करने का समय आ गया है।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि भारत में 25 उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय की कई पीठें हैं, और अब न्यायिक दृष्टिकोण में पूर्वानुमेयता और स्पष्टता लाना जरूरी है। उन्होंने सुझाव दिया कि समान राष्ट्रीय न्यायिक नीति एक ऐसा संस्थागत ढांचा हो सकती है जो सभी न्यायक्षेत्रों में सुसंगतता और स्पष्टता सुनिश्चित करे।
उन्होंने कहा, “हमें न्यायपालिका में ऐसा सामंजस्य स्थापित करना चाहिए, जहां विभिन्न आवाजें और भाषाएं एक ही संवैधानिक लय में बंधें।” साथ ही, न्यायपालिका की भूमिका का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि यह संविधान के सजग संरक्षक के रूप में काम करती है और बदलती वास्तविकताओं के अनुरूप संविधान के शब्दों में प्राण फूंकती रहती है।
सूर्यकांत ने न्याय तक पहुंच के महत्व पर भी प्रकाश डाला और कहा कि यह संविधान के प्रति निष्ठा का परिचायक है। इसके लिए न्यायिक ढांचे को मजबूत बनाना आवश्यक है, जिसमें केवल भौतिक सुविधाएँ ही नहीं बल्कि तकनीकी, प्रशासनिक और मानव संसाधन प्रणालियाँ भी शामिल हैं।
प्रधान न्यायाधीश ने वैकल्पिक विवाद समाधान जैसे मध्यस्थता के तरीकों को भी महत्वपूर्ण बताया और कहा कि ऐसे पूरक रास्ते सुलभ, विश्वसनीय और संविधान के मूल्यों में दृढ़ता से निहित होने चाहिए।
समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी, बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष विकास सिंह भी उपस्थित थे और उन्होंने विचार साझा किए।
प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत का यह संदेश न्याय में सुसंगतता और प्रभावशीलता बढ़ाने के लिए न्यायपालिका में एक व्यापक सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
