नयी दिल्ली, 5 नवंबर : देश के 12 राज्य वित्त वर्ष 2025-26 में महिलाओं के लिए बिना शर्त नकद अंतरण (यूसीटी) योजनाओं पर सामूहिक रूप से 1.68 लाख करोड़ रुपये खर्च करने जा रहे हैं। विचारक संस्था पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च की नई रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है। रिपोर्ट बताती है कि तीन साल पहले तक केवल दो राज्य ही महिलाओं के लिए ऐसी प्रत्यक्ष नकद सहायता योजनाएं चला रहे थे, लेकिन अब यह संख्या तेजी से बढ़कर 12 तक पहुंच गई है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इन 12 राज्यों में से छह राज्यों ने इस वित्त वर्ष के लिए राजस्व घाटे का अनुमान लगाया है। यह स्थिति महिला-केंद्रित कल्याणकारी योजनाओं पर बढ़ते खर्च से राजकोष पर बढ़ते दबाव को दर्शाती है। रिपोर्ट के अनुसार, “यदि इन योजनाओं पर होने वाला खर्च अलग कर दिया जाए, तो इन राज्यों के राजस्व संतुलन में उल्लेखनीय सुधार दिखता है।”
यूसीटी योजनाओं का उद्देश्य आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों की महिलाओं को मासिक प्रत्यक्ष नकद सहायता के माध्यम से सशक्त बनाना है। रिपोर्ट बताती है कि 2022-23 में केवल दो राज्य इस तरह की योजनाएं चला रहे थे, जबकि 2025-26 तक यह दायरा 12 राज्यों तक बढ़ गया है।
इन योजनाओं के तहत लाभार्थियों का चयन आय सीमा, आयु वर्ग और अन्य सामाजिक-आर्थिक मानदंडों के आधार पर किया जाता है। रिपोर्ट में बताया गया है कि असम और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों ने पिछले वर्ष की तुलना में अपने बजटीय आवंटन में क्रमशः 31 प्रतिशत और 15 प्रतिशत की वृद्धि की है।
महिलाओं के लिए नकद सहायता प्रदान करने वाली प्रमुख योजनाओं में तमिलनाडु की ‘कलैगनार मगलिर उरीमई थोगई थित्तम’, मध्य प्रदेश की ‘लाड़ली बहना योजना’, और कर्नाटक की ‘गृह लक्ष्मी योजना’ शामिल हैं। इन योजनाओं के तहत पात्र परिवारों की महिलाओं को 1,000 रुपये से 1,500 रुपये तक की मासिक सहायता दी जाती है।
हालांकि, पीआरएस की रिपोर्ट ने चेतावनी दी है कि ये योजनाएं राज्यों के बजट पर लंबी अवधि का वित्तीय बोझ बढ़ा रही हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, यदि इन योजनाओं को सीमित या बंद कर दिया जाए तो राज्यों की वित्तीय स्थिति में उल्लेखनीय सुधार हो सकता है। उदाहरण के लिए, कर्नाटक का मौजूदा बजटीय घाटा सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के 0.6 प्रतिशत से घटकर 0.3 प्रतिशत अधिशेष में पहुंच सकता है, जबकि मध्य प्रदेश का अधिशेष 0.4 प्रतिशत से बढ़कर 1.1 प्रतिशत तक जा सकता है।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने भी हाल ही में चेताया था कि महिलाओं, युवाओं और किसानों के लिए सब्सिडी और नकद हस्तांतरण योजनाओं पर बढ़ता खर्च राज्यों की उत्पादक निवेश क्षमता को सीमित कर सकता है।
कुछ राज्यों ने इस वित्तीय दबाव को देखते हुए अपने लाभों में संशोधन भी शुरू कर दिया है। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र ने मुख्यमंत्री लाडकी बहिन योजना के तहत अप्रैल 2025 से मासिक भुगतान में कटौती की है, जबकि झारखंड ने मुख्यमंत्री महिला सम्मान योजना के तहत भुगतान बढ़ाकर 2,500 रुपये प्रति माह कर दिया है।
