नयी दिल्ली, 17अक्टूबर – उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को न्यायाधिकरण सुधार अधिनियम, 2021 के विभिन्न प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने संबंधी याचिकाओं पर अंतिम सुनवाई शुरू की।
प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ को प्रमुख याचिकाकर्ता मद्रास बार एसोसिएशन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार ने संबोधित किया।
वरिष्ठ वकील ने कहा कि जुलाई 2021 में उच्चतम न्यायालय ने न्यायाधिकरण सुधार (युक्तिकरण और सेवा की शर्तें) अध्यादेश, 2021 के कई प्रावधानों को रद्द कर दिया और पाया कि वे न्यायिक स्वतंत्रता और शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं।
उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय द्वारा अध्यादेश के कई प्रावधानों को रद्द करने के बाद केंद्र सरकार न्यायाधिकरण सुधार अधिनियम लेकर आई।
उन्होंने कहा कि हैरानी की बात यह है कि अधिनियम में अध्यादेश के वे प्रावधान शब्दश: शामिल हैं जिन्हें शीर्ष अदालत ने रद्द कर दिया था, जो तब तक अस्वीकार्य है जब तक कि सरकार द्वारा फैसले के आधार को हटा नहीं दिया जाता।
पीठ 27 अक्टूबर को सुनवाई पुन: शुरू करेगी।
उच्चतम न्यायालय ने अध्यादेश के उस प्रावधान को रद्द कर दिया था, जिसके तहत न्यायाधिकरण के सदस्यों और अध्यक्षों का कार्यकाल घटाकर चार वर्ष कर दिया गया था। न्यायालय ने कहा था कि कार्यकाल की कम अवधि न्यायपालिका पर कार्यपालिका के प्रभाव को बढ़ावा दे सकती है।
न्यायालय ने कहा था कि सेवा की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कार्यकाल पांच वर्ष का होना चाहिए, तथा अध्यक्ष के लिए अधिकतम आयु 70 वर्ष तथा सदस्यों के लिए 67 वर्ष होनी चाहिए।
पीठ ने न्यायाधिकरणों में नियुक्ति के लिए न्यूनतम आयु 50 वर्ष निर्धारित करने के प्रावधान को भी रद्द कर दिया था।
