पटना, 11 अक्टूबर — बिहार की सियासत में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) और महागठबंधन के बीच लंबे समय से जारी द्विपक्षीय मुकाबले को तोड़ने के लिए ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी तीसरे मोर्चे की रणनीति पर काम कर रहे हैं। पार्टी ने आगामी विधानसभा चुनाव में 100 सीटों पर उम्मीदवार उतारने की तैयारी शुरू कर दी है।
ओवैसी ने हाल ही में सीमांचल क्षेत्र का व्यापक दौरा किया, जिसे पार्टी का परंपरागत गढ़ माना जाता है। किशनगंज में पत्रकारों से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा, “राज्य की जनता को एक नया विकल्प चाहिए और हम वही बनने की कोशिश कर रहे हैं।” सीमांचल के चार जिलों—कटिहार, किशनगंज, अररिया और पूर्णिया—में मुस्लिम आबादी प्रभावशाली है और यह क्षेत्र लंबे समय से विकास की उपेक्षा का शिकार रहा है।
एआईएमआईएम ने पहली बार 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में हिस्सा लिया था, लेकिन 2020 में पार्टी ने सीमांचल की पांच सीटों पर जीत हासिल कर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। हालांकि, 2022 में पार्टी को झटका तब लगा जब उसके चार विधायक राजद में शामिल हो गए। केवल प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान पार्टी में बने रहे।
अब एक बार फिर एआईएमआईएम ने बिहार में सियासी जमीन मजबूत करने के लिए मोर्चा खोला है। पार्टी प्रमुख ओवैसी सीमांचल से आगे बढ़कर अन्य क्षेत्रों में भी पैर जमाने की कोशिश में हैं। प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान ने बताया कि पार्टी ने राजद प्रमुख लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव को महागठबंधन में शामिल करने के लिए पत्र लिखा था, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।
ईमान ने कहा, “हम इस बार सामाजिक न्याय और अल्पसंख्यकों के अधिकार के मुद्दे पर चुनाव लड़ेंगे और दोनों गठबंधनों को अपनी ताकत दिखाएंगे।”
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, बिहार में 17.7% मुस्लिम आबादी है और 47 विधानसभा सीटों पर उनका निर्णायक प्रभाव है। ऐसे में एआईएमआईएम का विस्तार महागठबंधन को नुकसान पहुंचा सकता है।
विशेषज्ञ अरुण कुमार पांडे के अनुसार, “ओवैसी सीमांचल की राजनीति से आगे बढ़कर राज्यव्यापी असर डालना चाहते हैं। यदि वह दलितों और पिछड़ी जातियों के साथ सामाजिक समीकरण साधने में सफल होते हैं, तो यह दोनों प्रमुख गठबंधनों के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है।”
बिहार में तीसरे मोर्चे की यह पहल राज्य की पारंपरिक राजनीति में एक नए बदलाव का संकेत देती है।
