“सऊदी अरब–पाकिस्तान रक्षा समझौता: एक पर हमला, दोनों पर हमला माना जाएगा”

सऊदी अरब और पाकिस्तान ने एक अहम रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसके तहत दोनों देशों ने तय किया है कि किसी एक पर हमला दूसरे पर हमला माना जाएगा। यह समझौता क्षेत्रीय सुरक्षा और सामरिक संतुलन के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम सऊदी अरब की उस नई रणनीति का हिस्सा है, जिसके तहत वह पारंपरिक अमेरिकी सुरक्षा गारंटी के विकल्प तलाश रहा है।

सऊदी अरब लंबे समय से अमेरिका पर अपनी सुरक्षा जरूरतों के लिए निर्भर रहा है, लेकिन हाल के वर्षों में वाशिंगटन और रियाद के बीच संबंधों में उतार-चढ़ाव देखने को मिला है। ऐसे में पाकिस्तान जैसे परमाणु शक्ति संपन्न और सामरिक रूप से अहम देश के साथ रक्षा सहयोग को मजबूत करना रियाद की दीर्घकालिक रणनीति को मजबूत करता है। पाकिस्तान को भी इस समझौते से आर्थिक और सुरक्षा दोनों ही स्तरों पर मजबूती मिलने की उम्मीद है।

हालांकि इस नए गठजोड़ ने चीन के सामने एक कूटनीतिक दुविधा खड़ी कर दी है। चीन के पाकिस्तान और सऊदी अरब दोनों के साथ गहरे संबंध हैं। पाकिस्तान के साथ उसकी आर्थिक और रक्षा साझेदारी दशकों पुरानी है, वहीं सऊदी अरब के साथ ऊर्जा क्षेत्र से लेकर असैन्य परमाणु कार्यक्रम तक में सहयोग जारी है। अब जब रियाद और इस्लामाबाद का रक्षा समझौता इस स्तर पर पहुंच गया है कि किसी एक पर हमला दूसरे पर हमला माना जाएगा, तो बीजिंग को यह तय करना होगा कि संकट की स्थिति में उसका संतुलन किस ओर झुकेगा।

विशेषज्ञों का कहना है कि यह समझौता पश्चिम एशिया और दक्षिण एशिया दोनों क्षेत्रों में सुरक्षा समीकरणों को बदल सकता है। इससे न केवल अमेरिका की भूमिका पर असर पड़ेगा बल्कि ईरान और अन्य क्षेत्रीय देशों की रणनीतियों पर भी इसका गहरा प्रभाव देखने को मिल सकता है।

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