खालिदा जिया के निधन से BNP के भविष्य पर सवाल, क्या तारिक रहमान को मिलेगी चुनावी सहानुभूति?

Khaleda Zia's death raises questions about BNP's future; will Tariq...

ढाका। बांग्लादेश की राजनीति में एक बड़े युग का अंत हो गया है। आम चुनाव से महज डेढ़ माह पहले देश की पूर्व प्रधानमंत्री और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) की वरिष्ठ नेता खालिदा जिया के निधन ने न सिर्फ राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है, बल्कि आगामी चुनावों को लेकर नए सवाल भी खड़े कर दिए हैं। उनके निधन को बीएनपी के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है।

अब पार्टी की कमान उनके बेटे तारिक रहमान के हाथों में है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या खालिदा जिया के समर्थक उनके बेटे के नेतृत्व को स्वीकार करेंगे और क्या सहानुभूति की लहर बीएनपी को चुनावी फायदा दिला पाएगी?

चुनाव से पहले बड़ा झटका

बांग्लादेश में फरवरी में आम चुनाव प्रस्तावित हैं। इससे ठीक पहले खालिदा जिया का निधन बीएनपी की चुनावी रणनीति को प्रभावित कर सकता है। दशकों तक पार्टी को मजबूत नेतृत्व देने वाली जिया का जाना संगठनात्मक और भावनात्मक दोनों स्तरों पर पार्टी के लिए चुनौतीपूर्ण माना जा रहा है।

हालांकि, खालिदा जिया की राजनीतिक विरासत और उनके प्रति जनता की भावनाएं बीएनपी के लिए सहानुभूति का बड़ा आधार बन सकती हैं।

क्या तारिक रहमान को मिलेगा सहानुभूति वोट?

राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि खालिदा जिया के निधन के बाद तारिक रहमान को सहानुभूति का लाभ मिलने की संभावना है। लंबे समय से लंदन में निर्वासन में रह रहे तारिक रहमान पहले से ही पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष की भूमिका निभा रहे हैं।

विशेषज्ञों के अनुसार, यदि बीएनपी अपने पारंपरिक समर्थकों को एकजुट रखने और मजबूत चुनावी रणनीति अपनाने में सफल रहती है, तो यह सहानुभूति वोट पार्टी को मजबूती दे सकता है।

पार्टी में अस्थिरता की आशंका

हालांकि तस्वीर का दूसरा पहलू भी है। खालिदा जिया की लोकप्रियता और करिश्माई नेतृत्व की भरपाई कर पाना तारिक रहमान के लिए आसान नहीं होगा। पार्टी के भीतर नेतृत्व और संगठनात्मक संतुलन बनाए रखना बड़ी चुनौती बन सकता है।

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि नेता के निधन के बाद पार्टी में आंतरिक अस्थिरता और निर्णयों में भ्रम की स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है, जिसका विपक्ष फायदा उठाने की कोशिश करेगा।

खालिदा जिया: बांग्लादेश की राजनीति का बड़ा नाम

खालिदा जिया बांग्लादेश की राजनीति की सबसे प्रभावशाली शख्सियतों में से एक रही हैं। वह देश की पहली महिला प्रधानमंत्री और मुस्लिम दुनिया की दूसरी महिला प्रधानमंत्री थीं। लगभग चार दशकों तक उन्होंने अपनी राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी शेख हसीना के साथ बांग्लादेश की राजनीति पर वर्चस्व बनाए रखा।

बीएनपी की अध्यक्ष रहते हुए वह तीन बार प्रधानमंत्री बनीं और सैन्य शासन के बाद लोकतंत्र की बहाली में अहम भूमिका निभाई।

राजनीति में प्रवेश से सत्ता तक का सफर

खालिदा जिया का राजनीति में प्रवेश योजनाबद्ध नहीं था। अपने पति और तत्कालीन राष्ट्रपति जियाउर रहमान की हत्या के बाद वह राजनीति में आईं। पहले फर्स्ट लेडी के रूप में पहचान बनी और फिर 1980 के दशक में बीएनपी की अध्यक्ष बनीं।

1991 में बीएनपी की जीत के साथ वह पहली बार प्रधानमंत्री बनीं और देश में राष्ट्रपति प्रणाली से संसदीय प्रणाली की वापसी कराई। इसके बाद 2001 में दोबारा सत्ता में लौटीं और 2006 तक प्रधानमंत्री रहीं।

उतार-चढ़ाव भरा राजनीतिक जीवन

खालिदा जिया का राजनीतिक जीवन विवादों से भी अछूता नहीं रहा। भ्रष्टाचार के मामलों में जेल जाना पड़ा, लेकिन इसके बावजूद उनकी लोकप्रियता कम नहीं हुई। वर्ष 2024 में राष्ट्रपति की माफी के बाद वह फिर से राजनीतिक मंच पर सक्रिय हुई थीं।

विदेश नीति के मोर्चे पर उन्होंने ‘लुक ईस्ट नीति’ को बढ़ावा दिया, जिससे चीन और मुस्लिम देशों के साथ रिश्ते मजबूत हुए, जबकि भारत के साथ संबंधों में कभी-कभी तनाव देखने को मिला।

BNP का भविष्य किस पर निर्भर करेगा

अब बीएनपी का भविष्य पूरी तरह से तारिक रहमान के नेतृत्व, पार्टी की एकजुटता और चुनावी रणनीति पर निर्भर करेगा। खालिदा जिया की विरासत निश्चित रूप से पार्टी के लिए प्रेरणा बनेगी, लेकिन यह देखना अहम होगा कि बीएनपी उस विरासत को चुनावी सफलता में कितना बदल पाती है।

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