‘विभाजन की बढ़ती प्रवृत्ति’ के बीच समाज को एकजुट रख सकता है ‘वंदे मातरम’: दत्तात्रेय होसबाले

नयी दिल्ली, एक नवंबर : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने शनिवार को राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम’ की रचना के 150 वर्ष पूरे होने के अवसर पर इसके रचयिता बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय को नमन करते हुए कहा कि यह गीत आज भी देश की एकता और राष्ट्रभावना को सशक्त करने की शक्ति रखता है। उन्होंने कहा कि जब समाज में क्षेत्र, भाषा और जाति के आधार पर ‘विभाजन की प्रवृत्ति’ बढ़ रही है, तब वंदे मातरम ही वह सूत्र है जो पूरे देश को एकता के बंधन में जोड़ सकता है।

होसबाले ने अपने वक्तव्य में कहा,

“वंदे मातरम राष्ट्र की आत्मा का गीत है। इसका दिव्य प्रभाव आज भी समाज को राष्ट्र के प्रति समर्पण और गौरव की भावना से ओत-प्रोत करता है। यह केवल गीत नहीं, बल्कि भारत की आत्मा की ध्वनि है, जो हर भारतीय के भीतर राष्ट्रप्रेम का संचार करती है।”

उन्होंने कहा कि बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा 1875 में रचित यह गीत आज भी समाज की राष्ट्रीय चेतना, सांस्कृतिक पहचान और एकात्म भाव का सशक्त प्रतीक है। 1896 में रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में इसे गाए जाने के बाद से यह गीत देशभक्ति का मंत्र और राष्ट्रीय उद्घोष बन गया।

संघ सरकार्यवाह ने कहा कि वंदे मातरम की व्यापकता का प्रमाण इस बात में निहित है कि भारत के अनेक महान विभूतियों — महर्षि अरविंद, मैडम भीकाजी कामा, महाकवि सुब्रमण्यम भारती, लाला हरदयाल, लाला लाजपत राय जैसे नेताओं ने अपनी पत्र-पत्रिकाओं में ‘वंदे मातरम’ शब्द को शामिल किया।

उन्होंने कहा,

“महात्मा गांधी ने भी वर्षों तक अपने पत्रों का समापन ‘वंदे मातरम’ के साथ किया। यह गीत स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान हर देशभक्त के हृदय की आवाज बन गया था। ‘बंग-भंग’ आंदोलन से लेकर आज़ादी के हर संघर्ष में यह उद्घोष ही भारतीयों की प्रेरणा का स्रोत रहा।”

होसबाले ने कहा कि वर्तमान समय में जब समाज संकीर्णताओं से जूझ रहा है, तब वंदे मातरम की भावना को आत्मसात करना पहले से कहीं अधिक आवश्यक है। उन्होंने कहा कि यह गीत किसी क्षेत्र या समुदाय का नहीं, बल्कि पूरे भारतवर्ष की आत्मा का प्रतीक है, जो “मां भारती” के प्रति प्रेम और समर्पण की भावना जगाता है।

संघ के सरकार्यवाह ने आगे कहा कि वंदे मातरम की रचना के 150 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में आरएसएस पूरे देश में कार्यक्रम आयोजित करेगा और समाज के सभी वर्गों से इस अभियान में सक्रिय भागीदारी का आह्वान करता है।

उन्होंने कहा,

“अब समय है कि हम वंदे मातरम की प्रेरणा को प्रत्येक हृदय में जागृत करें और ‘स्व’ के आधार पर राष्ट्र निर्माण के कार्य में जुटें। यही गीत हमें हमारी साझा पहचान और सामूहिक शक्ति का एहसास कराता है।”

होसबाले ने अंत में कहा कि वंदे मातरम की गूंज केवल स्वतंत्रता आंदोलन की स्मृति नहीं, बल्कि राष्ट्रनिर्माण की सतत प्रेरणा है, जो भारत को एक सशक्त, एकात्म और आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाने की दिशा में मार्गदर्शन करती रहेगी।

Related Post

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *