वानखेड़े की मानहानि याचिका: दिल्ली हाई कोर्ट ने शाहरुख, नेटफ्लिक्स, रेड चिलीज को भेजा समन

नई दिल्ली, 8 अक्टूबर — दिल्ली उच्च न्यायालय ने भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) के अधिकारी समीर वानखेड़े द्वारा दायर मानहानि मामले में अभिनेता शाहरुख खान, उनकी पत्नी गौरी खान की कंपनी रेड चिलीज एंटरटेनमेंट, और ओटीटी मंच नेटफ्लिक्स समेत कई पक्षों को समन जारी किया है। मामला नेटफ्लिक्स की वेब सीरीज ‘द बैड्स ऑफ बॉलीवुड’ से जुड़ा है, जिसमें वानखेड़े का कहना है कि उनकी प्रतिष्ठा को जानबूझकर धूमिल किया गया है।

न्यायमूर्ति पुरुषेंद्र कुमार कौरव की एकल पीठ ने प्रतिवादियों को सात दिन के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। अदालत ने अगली सुनवाई के लिए 30 अक्टूबर की तारीख तय की है। हालांकि इस स्तर पर अदालत ने कोई अंतरिम रोक का आदेश जारी नहीं किया है।

वानखेड़े ने अपने वकीलों के माध्यम से अदालत से अपील की कि संबंधित सीरीज और ऑनलाइन पोस्टों को तत्काल हटाया जाए, क्योंकि इससे उनकी, उनकी पत्नी और बहन की छवि को गंभीर नुकसान पहुंचा है। याचिका में दावा किया गया है कि यह सीरीज एक खास समय पर—शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान से जुड़े एनसीबी केस की पृष्ठभूमि में—रिलीज की गई, जिससे वानखेड़े को व्यक्तिगत रूप से निशाना बनाया गया।

याचिका में यह भी कहा गया है कि सीरीज में एक पात्र को ‘सत्यमेव जयते’ का नारा बोलते हुए और फिर अश्लील इशारा करते हुए दिखाया गया है, जो राष्ट्रीय प्रतीक का अपमान है। इसे राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण अधिनियम, 1971, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, और भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के प्रावधानों का उल्लंघन बताया गया है।

समीर वानखेड़े ने इस मुकदमे में दो करोड़ रुपये की क्षतिपूर्ति की मांग की है, जिसे वे टाटा मेमोरियल अस्पताल को दान करना चाहते हैं। उनके वकीलों ने कोर्ट से सीरीज पर तत्काल रोक लगाने की अपील की, लेकिन फिलहाल अदालत ने केवल जवाब दाखिल करने के लिए समय दिया है।

इस मामले में गूगल, मेटा, एक्स कॉर्प (पूर्व में ट्विटर), आरपीएसजी लाइफस्टाइल मीडिया और कुछ अज्ञात प्रतिवादियों को भी पार्टी बनाया गया है। नेटफ्लिक्स के वकील ने कोर्ट में याचिका का विरोध किया और अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए समय मांगा।

यह मामला न सिर्फ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम व्यक्तिगत प्रतिष्ठा के अधिकार के टकराव का एक और उदाहरण बनकर उभरा है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि डिजिटल कंटेंट को लेकर कानूनी चुनौतियां अब पहले से कहीं अधिक गहरी और जटिल होती जा रही हैं।

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