नैनीताल, 18 अक्टूबर — उत्तराखंड सरकार ने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के कार्यान्वयन से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले में नैनीताल उच्च न्यायालय को सूचित किया है कि यूसीसी के तहत बनाए गए नियमों में संशोधन किया जा रहा है। सरकार ने कहा कि यह प्रक्रिया खासतौर पर सहवासी संबंधों (लिव-इन रिलेशनशिप) के पंजीकरण से जुड़े प्रावधानों को अधिक पारदर्शी, व्यावहारिक और संवेदनशील बनाने के उद्देश्य से की जा रही है।
मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ के समक्ष 15 अक्टूबर को राज्य के महाधिवक्ता एस. एन. बाबुलकर के माध्यम से पेश किए गए 78 पृष्ठों के विस्तृत हलफनामे में इन संशोधनों की जानकारी दी गई।
हलफनामे के अनुसार, यूसीसी नियमों के तहत रजिस्ट्रार कार्यालय के नियम 380 में संशोधन किया जा रहा है। इसमें उन परिस्थितियों को स्पष्ट रूप से सूचीबद्ध किया गया है जिनके अंतर्गत सहवासी संबंधों का पंजीकरण स्वीकार नहीं किया जा सकता। इन परिस्थितियों में निम्नलिखित प्रमुख शर्तें शामिल हैं:
जब सहवासी जोड़ीदार निषिद्ध रक्त संबंध में हों,
जब एक या दोनों व्यक्ति पहले से विवाहित हों या किसी अन्य सहवासी संबंध में रह रहे हों,
जब दोनों में से कोई एक नाबालिग हो।
सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि सहवासी संबंधों की पंजीकरण प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी बनाने के साथ-साथ इससे संबंधित जानकारी केवल “रिकॉर्ड रखने” के उद्देश्य से पुलिस के साथ साझा की जाएगी। इसके लिए नियमों में संशोधन कर पुलिस और रजिस्ट्रार के बीच डेटा साझा करने के दायरे को सीमित किया गया है ताकि नागरिकों की गोपनीयता का उल्लंघन न हो।
सहवासी संबंध की समाप्ति के मामले में भी पंजीकरण की तरह ही एक नया प्रावधान जोड़ा गया है, जिसमें यह स्पष्ट किया गया है कि समाप्ति की सूचना भी पुलिस के साथ केवल रिकॉर्ड हेतु साझा की जाएगी, न कि किसी अन्य प्रशासनिक या कानूनी कार्रवाई के लिए।
एक अन्य महत्वपूर्ण बदलाव यह प्रस्तावित किया गया है कि पंजीकरण और घोषणा से संबंधित प्रक्रियाओं में पहचान प्रमाण के रूप में आधार कार्ड की अनिवार्यता में लचीलापन लाया जाएगा। यह विशेष रूप से उन मामलों में लागू होगा जहां आवेदक प्राथमिक नहीं हैं, या उनके पास आधार संख्या उपलब्ध नहीं है।
इसके अतिरिक्त, यदि किसी सहवासी संबंध की घोषणा को रजिस्ट्रार द्वारा अस्वीकार कर दिया जाता है, तो उस फैसले को चुनौती देने के लिए अब 45 दिनों की समयसीमा निर्धारित की गई है, जो पहले 30 दिन थी। यह अवधि अस्वीकृति आदेश प्राप्त होने की तारीख से मानी जाएगी।
सरकार के अनुसार, इन संशोधनों का उद्देश्य यूसीसी के कार्यान्वयन को अधिक व्यावहारिक और नागरिक हितों के अनुकूल बनाना है। यह सुनिश्चित किया जाएगा कि संवेदनशील विषयों से जुड़ी प्रक्रियाएं पारदर्शी होने के साथ-साथ व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गोपनीयता के अधिकारों का भी सम्मान करें।
उत्तराखंड देश का पहला राज्य है जिसने यूसीसी को लागू करने की दिशा में ठोस कदम उठाए हैं। इन नियमों में हो रहे संशोधन यह संकेत देते हैं कि सरकार संवेदनशील मुद्दों को लेकर सजग है और नागरिकों की आशंकाओं व अधिकारों को संतुलित करने का प्रयास कर रही है।
