नयी दिल्ली, 27 अक्टूबर । उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को महाराष्ट्र सरकार को कड़ी चेतावनी देते हुए कहा कि यदि मुंबई में प्रतिपूरक वनरोपण (Compensatory Afforestation) को सही ढंग से लागू नहीं किया गया, तो मुंबई मेट्रो रेल और गोरेगांव-मुलुंड लिंक रोड (जीएमएलआर) जैसी परियोजनाओं के लिए दी गई पेड़ काटने की सभी मंजूरियां रद्द कर दी जाएंगी।
प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने राज्य के मुख्य सचिव को निर्देश दिया कि वे सभी संबंधित हितधारकों—बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी), मुंबई मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एमएमआरसीएल) और वन विभाग—के साथ बैठक करें तथा यह बताएं कि “प्रतिपूरक वनरोपण” को प्रभावी बनाने के लिए क्या ठोस कदम उठाए जा रहे हैं। अदालत ने मुख्य सचिव से 11 नवंबर तक या उससे पहले हलफनामा दाखिल करने को कहा है।
सुनवाई के दौरान जब पीठ को बताया गया कि प्रतिपूरक वनरोपण को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा और लगाए गए पौधों की उचित देखभाल नहीं की जाती, तो अदालत ने नाराजगी जताई। पीठ ने कहा, “देश के विकास और पारिस्थितिकी के संरक्षण के बीच संतुलन आवश्यक है। मुंबई जैसे महानगर में यह संतुलन और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।”
बीएमसी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि जीएमएलआर परियोजना के लिए करीब 1,000 पेड़ों को गिराने की आवश्यकता है, जिनमें से 632 पेड़ प्रतिरोपित किए जाएंगे और 407 को स्थायी रूप से काटना पड़ेगा। उन्होंने दलील दी कि यह परियोजना शहर की यातायात व्यवस्था के लिए अत्यंत जरूरी है।
वहीं, पर्यावरण कार्यकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने आरोप लगाया कि प्रतिपूरक वनरोपण “सिर्फ दिखावा” बनकर रह गया है। उन्होंने कहा, “एक फुट ऊंचे पौधे लगाए जा रहे हैं, जिनकी छह महीने तक कोई देखभाल नहीं होती, नतीजतन वे मर जाते हैं।”
उन्होंने यह भी बताया कि एमएमआरसीएल ने प्रतिपूरक वनरोपण के लिए संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान (एसजीएनपी) की भूमि ली और वनरोपण का जिम्मा उसी के अधिकारियों को सौंप दिया, जो हितों के टकराव जैसा है।
प्रधान न्यायाधीश गवई ने टिप्पणी की, “अगर बंजर भूमि पर वनरोपण किया जा रहा है तो वह गलत नहीं, लेकिन एमएमआरसीएल जैसी एजेंसियों को यह जिम्मेदारी खुद निभानी चाहिए।”
अदालत ने कहा कि ऐसे महत्वपूर्ण पर्यावरणीय उपायों को हल्के में नहीं लिया जा सकता। फिलहाल शीर्ष अदालत ने बीएमसी को जीएमएलआर परियोजना के तहत पेड़ काटने की अनुमति देने से इंकार कर दिया है। अब इस मामले की अगली सुनवाई 11 नवंबर को होगी, जब महाराष्ट्र सरकार को अपनी विस्तृत योजना अदालत के समक्ष पेश करनी होगी।
