बिहार विधानसभा चुनावों में भाजपा-नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की शानदार जीत के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति में नया मंथन शुरू हो गया है। 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए विपक्षी दलों के गठजोड़—INDIA गठबंधन—के भविष्य पर सवाल उठने लगे हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कांग्रेस को “मुस्लिम लीगी” और “माओवादी” करार देने तथा “जल्द कांग्रेस में विभाजन देखने को मिलेगा” जैसे बयान ने राजनीतिक चर्चा को और गरमा दिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह माहौल यूपी में विपक्षी समीकरणों के पुनर्मूल्यांकन की दिशा तय करेगा।
समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख अखिलेश यादव ने बिहार नतीजों पर प्रतिक्रिया देते हुए भाजपा को “दल नहीं, छल” बताया और स्वीकार किया कि “भाजपा से बहुत कुछ सीखने की ज़रूरत है।” वहीं यूपी के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने “मगध के बाद अब अवध” कहकर इशारा दिया कि भाजपा बिहार की जीत को यूपी में भी दोहराने की तैयारी में है।
2024 लोकसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस गठबंधन ने यूपी में 43 सीटें जीतकर विपक्ष को नई ऊर्जा दी थी, लेकिन अब सवाल है कि क्या यह तालमेल 2027 तक कायम रह पाएगा? कांग्रेस यूपी नेतृत्व इस पर स्पष्ट जवाब देने से बच रहा है, जबकि सपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी का कहना है कि “INDIA गठबंधन पर कोई आंच नहीं आएगी, हम बिहार से सबक लेकर और मजबूत होकर सामने आएंगे।”
उन्होंने दावा किया कि यूपी में चल रही एसआईआर (विशेष गहन पुनरीक्षण) प्रक्रिया में भाजपा की “गड़बड़ियों” का मुकाबला करने के लिए कार्यकर्ता सतर्क हैं और 2027 में अखिलेश यादव के नेतृत्व में सरकार बनाने का लक्ष्य अडिग है।
उधर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी ने बिहार की जीत को मोदी सरकार की “गरीब कल्याण और विकास नीतियों की सफलता” बताया और दावा किया कि 2027 में राजग यूपी में “इतिहास रचेगा”।
बिहार के नतीजों ने स्पष्ट कर दिया है कि यूपी की राजनीतिक जमीन अब और गर्म होने वाली है—और 2027 की लड़ाई सत्ता बनाम गठबंधन से आगे बढ़कर राजनीतिक रणनीति, एकता और जनविश्वास की बड़ी परीक्षा बनने वाली है।
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