नई दिल्ली, 4 नवंबर : दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि हाल के दिनों में यह एक “चिंताजनक प्रवृत्ति” बन गई है कि मीडिया केवल सनसनी पैदा करने के लिए अदालतों की सुनवाई के दौरान की गई सामान्य टिप्पणियों को खबर बना रहा है। अदालत ने कहा कि ऐसी टिप्पणियां अक्सर सुनवाई के मूल मामले से संबंधित नहीं होतीं, लेकिन उन्हें गैरज़रूरी महत्व देकर रिपोर्ट किया जाता है।
यह टिप्पणी अदालत ने अगस्ता वेस्टलैंड मामले के आरोपी श्रवण गुप्ता की याचिका पर सुनवाई के दौरान की। गुप्ता ने आरोप लगाया कि 16 और 17 जुलाई को कुछ मीडिया समूहों ने उनकी और उनके वकील विकास पाहवा की प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचाने वाले झूठे और मानहानिकारक समाचार प्रसारित किए।
न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा ने कहा, “मीडिया केवल सनसनी पैदा करने के लिए सामान्य टिप्पणियों को प्रसारित करता है, जो सुनवाई से जुड़ी हो भी सकती है और नहीं भी।” उन्होंने यह भी कहा कि यह झूठा आरोप लगाना कि टिप्पणी विशेष रूप से पाहवा के लिए थी, गलत और सनसनीखेज कहानी बनाने का प्रयास है।
अदालत ने कहा कि मीडिया की जिम्मेदारी केवल सही जानकारी देना नहीं है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना है कि सामान्य टिप्पणियों को संदर्भ से हटाकर प्रमुख घटना के रूप में पेश न किया जाए।
गुप्ता की याचिका में यह भी अनुरोध किया गया था कि मीडिया समूह अपमानजनक सामग्री हटाएं और सार्वजनिक माफी प्रकाशित करें, लेकिन उच्च न्यायालय ने कहा कि प्रतिष्ठित मीडिया समूह स्वयं इस बात पर विचार करेंगे कि ऐसी रिपोर्टिंग जारी रखी जाए या नहीं।
साथ ही अदालत ने गुप्ता के अनुरोध को खारिज कर दिया कि उन्हें ईडी द्वारा जारी गैर-जमानती वारंट (एनबीडब्ल्यू) रद्द किया जाए। अदालत ने कहा कि गुप्ता वीडियो कॉन्फ्रेंस नियमों का दुरुपयोग कर जांच में शामिल होने से बच रहे हैं और उनके खिलाफ जारी वारंट सही था।
गुप्ता पर आरोप है कि उन्होंने अगस्ता वेस्टलैंड वीवीआईपी हेलिकॉप्टर घोटाले में 3,457,180 अमेरिकी डॉलर से अधिक की अवैध आय को वैध करने के लिए विदेशी कंपनियां बनाई। उनके खिलाफ धन शोधन और संपत्ति कुर्की से जुड़े कई मामले दर्ज हैं।
अदालत ने स्पष्ट किया कि मीडिया को सुनवाई की सामान्य टिप्पणियों को सनसनीखेज खबर बनाने से बचना चाहिए, ताकि किसी भी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को अनावश्यक नुकसान न पहुंचे।
