दलबदल कानून में सुधार जरूरी, जनादेश का सम्मान हो: विपक्ष

नयी दिल्ली, 15 दिसंबर : राज्यसभा में सोमवार को कई विपक्षी दलों के सदस्यों ने दलबदल विरोधी कानून में सुधार की मांग करते हुए कहा कि चुनाव के बाद भी जनादेश का सम्मान किया जाना लोकतंत्र की मजबूती के लिए आवश्यक है। उच्च सदन में चुनाव सुधारों पर चर्चा के दौरान भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के सांसद के. आर. सुरेश रेड्डी और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के जॉन ब्रिटास ने कहा कि चुनावी घोषणापत्र में किए गए वादों को पूरा न करना मतदाताओं के साथ “शाब्दिक रूप से धोखाधड़ी” है और इस तरह का दलबदल चुनावों की शुचिता पर गंभीर सवाल खड़े करता है।

रेड्डी ने कहा कि दो बड़े संवैधानिक संशोधनों के बावजूद भारतीय लोकतंत्र के सामने सबसे बड़ी चुनौती आज भी दलबदल विरोधी व्यवस्था ही बनी हुई है। उन्होंने कहा कि मतदाता की भूमिका केवल वोट डालने तक सीमित नहीं होती। “हमें मतदाता का सम्मान करना होगा। आज जैसे ही चुनाव खत्म होता है, उसके बाद ड्रामा शुरू हो जाता है,” उन्होंने टिप्पणी की।

बीआरएस सांसद ने विशेष रूप से छोटे राज्यों का जिक्र करते हुए कहा कि जहां विधायकों की संख्या कम होती है, वहां दलबदल का “खेल” शुरू हो जाता है। उन्होंने बताया कि उनकी पार्टी लंबे समय से दलबदल विरोधी कानूनों में सुधार की मांग करती रही है।

दलबदल पर प्रभावी नियंत्रण के लिए रेड्डी ने एक संसदीय समिति के गठन का सुझाव दिया, जो लगातार इस प्रवृत्ति पर नजर रखे और यह अध्ययन करे कि दलबदल किस तरह हो रहा है तथा उसे रोकने के क्या उपाय हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि दलबदल करने वाले विधायक उस पार्टी के घोषणापत्र के प्रति ईमानदार नहीं रहते, जिसके टिकट पर वे चुने गए होते हैं।

उन्होंने कहा, “चुनावी घोषणापत्र में बड़े-बड़े वादे करना और बाद में कुछ भी न देना मतदाता के साथ धोखाधड़ी है। मेरी राय में यही असली ‘वोट चोरी’ है।”

इसी तरह माकपा सांसद जॉन ब्रिटास ने भी कहा कि चुनाव समाप्त होने के बाद भी जनादेश का सम्मान होना चाहिए। उन्होंने सवाल उठाया, “जब खरीद-फरोख्त होती है, जब बड़े पैमाने पर दलबदल होता है और जब रिजॉर्ट पवित्र स्थल बन जाते हैं, तो चुनावों की पवित्रता पर सवाल उठना स्वाभाविक है। इससे निपटने का तरीका क्या है?”

ब्रिटास ने कहा कि पहले दलबदल विरोधी कानून छिटपुट मामलों पर रोक लगाता था, लेकिन अब “थोक में दलबदल” की घटनाएं सामने आ रही हैं, जो लोकतंत्र के लिए गंभीर चिंता का विषय हैं।

विपक्षी सदस्यों के इन तर्कों का जिक्र करते हुए जनता दल (यू) के सांसद संजय कुमार झा ने फरवरी 2005 के बिहार विधानसभा चुनावों का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि उस समय खंडित जनादेश आया था और नीतीश कुमार को सरकार बनाने के लिए समर्थन मिल गया था, लेकिन इसके बावजूद केंद्र में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार ने आधी रात को कैबिनेट बैठक कर बिहार में राष्ट्रपति शासन लगा दिया।

झा ने कहा, “किसी भी विधायक ने शपथ नहीं ली। वे विधायक आज तक पूर्व विधायक भी नहीं माने जाते, बल्कि उन्हें ‘अभूतपूर्व विधायक’ कहा जाता है, क्योंकि वे शपथ नहीं ले सके।” उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस की वजह से निर्वाचित विधायक शपथ नहीं ले पाए, जबकि उन्होंने चुनाव जीत लिया था।

चर्चा के दौरान सदस्यों ने इस बात पर सहमति जताई कि दलबदल पर प्रभावी नियंत्रण और जनादेश के सम्मान के बिना लोकतांत्रिक व्यवस्था की विश्वसनीयता कमजोर पड़ सकती है।

Related Post

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *