दरबार स्थानांतरण: चार साल बाद जम्मू से फिर शुरू हुआ सरकारी कामकाज, मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला पैदल पहुंचे सचिवालय

जम्मू, 3 नवंबर । चार साल के अंतराल के बाद जम्मू-कश्मीर में पारंपरिक ‘दरबार स्थानांतरण’ (दरबार मूव) की परंपरा एक बार फिर शुरू हो गई है। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला सोमवार को अपने सरकारी आवास से पैदल चलकर सिविल सचिवालय पहुंचे और शीतकालीन राजधानी जम्मू से सरकार के कामकाज की औपचारिक शुरुआत की।

जब उमर अब्दुल्ला रेजीडेंसी रोड और रघुनाथ बाजार से गुजरे, तो वहां जम्मू चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री सहित कई व्यापारी संगठनों ने उनका भव्य स्वागत किया। व्यापारिक समुदाय ने 2021 में बंद हुई वर्षों पुरानी इस परंपरा को बहाल करने के मुख्यमंत्री के निर्णय की सराहना की।

‘दरबार स्थानांतरण’ लगभग 150 साल पुरानी परंपरा है, जिसकी शुरुआत डोगरा शासकों ने की थी। इसके तहत मौसम के अनुसार जम्मू-कश्मीर सरकार के कार्यालय हर छह महीने में श्रीनगर और जम्मू के बीच स्थानांतरित किए जाते हैं। इसी क्रम में श्रीनगर स्थित सिविल सचिवालय और अन्य सरकारी कार्यालय 30 और 31 अक्टूबर को बंद कर दिए गए थे, जिसके बाद सोमवार से कामकाज जम्मू में शुरू हुआ।

उल्लेखनीय है कि जून 2021 में उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने ‘ई-ऑफिस सिस्टम’ लागू करते हुए दरबार स्थानांतरण की प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी। उस समय उन्होंने कहा था कि इससे सरकार को करीब 200 करोड़ रुपये सालाना बचत होगी।

हालांकि, इस निर्णय का जम्मू के व्यापारिक समुदाय ने विरोध किया था। उनका कहना था कि यह परंपरा जम्मू और कश्मीर के बीच सामाजिक व आर्थिक संबंधों को मजबूत करती है।

मुख्यमंत्री अब्दुल्ला ने 16 अक्टूबर को दरबार स्थानांतरण को बहाल करने की घोषणा की थी, जो उनके चुनावी वादों में से एक था। सोमवार सुबह उपमुख्यमंत्री सुरिंदर चौधरी और मंत्री जावेद राणा के साथ उमर अब्दुल्ला करीब नौ बजे अपने आवास से निकले और कुछ किलोमीटर पैदल चलकर सचिवालय पहुंचे।

इस दौरान बड़ी संख्या में लोग और व्यापारी सड़कों पर मौजूद थे। ढोल-नगाड़ों की थाप और फूलों की वर्षा के बीच मुख्यमंत्री का जोरदार स्वागत किया गया। भीड़ के उत्साह के कारण सुरक्षा कर्मियों को व्यवस्था बनाए रखने में खासी मशक्कत करनी पड़ी।

जम्मू चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के अध्यक्ष अरुण गुप्ता मुख्यमंत्री का स्वागत करने वाले पहले व्यक्तियों में शामिल थे और उन्होंने इस कदम को “जम्मू की अर्थव्यवस्था और पहचान के लिए नई उम्मीद” बताया।

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