नई दिल्ली। ग्रामीण रोजगार से जुड़े विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार और आजीविका मिशन (ग्रामीण) यानी जी राम जी बिल 2025 को लेकर संसद में राजनीतिक टकराव चरम पर पहुंच गया है। लोकसभा और राज्यसभा से विधेयक के पारित होते ही विपक्षी दलों ने आधी रात को संसद परिसर में जोरदार विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, डीएमके समेत कई दलों के सांसद संविधान सदन के बाहर धरने पर बैठ गए और इसे गरीब, किसान और मजदूर विरोधी करार दिया।
राज्यसभा ने इस विधेयक को आधी रात के बाद ध्वनि मत से पारित किया, जबकि इससे पहले लोकसभा इसे मंजूरी दे चुकी थी। यह नया कानून महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) की जगह लेगा। जी राम जी बिल के तहत ग्रामीण परिवारों को सालाना 125 दिन का मजदूरी रोजगार देने का प्रावधान किया गया है।
विपक्ष का आरोप: लोकतंत्र पर हमला
तृणमूल कांग्रेस की राज्यसभा उपनेता सागरिका घोष ने आरोप लगाया कि सरकार ने केवल पांच घंटे का नोटिस देकर इतना अहम विधेयक पेश किया और विस्तृत बहस की अनुमति नहीं दी। उन्होंने कहा कि इस बिल को प्रवर समिति को भेजा जाना चाहिए था। विपक्षी नेताओं ने इसे “लोकतंत्र की हत्या” बताते हुए देशभर में आंदोलन की चेतावनी दी।
कांग्रेस नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने इसे मजदूरों के लिए “सबसे दुखद दिन” बताया, वहीं कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि जिस योजना से करीब 12 करोड़ लोगों की आजीविका जुड़ी थी, उसे खत्म किया जा रहा है। उन्होंने दावा किया कि जैसे कृषि कानून वापस लिए गए थे, वैसे ही इस कानून को भी सरकार को वापस लेना पड़ेगा।
सरकार का बचाव
सरकार की ओर से केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विपक्ष के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि यह विधेयक गरीबों के कल्याण और रोजगार के अवसर बढ़ाने के उद्देश्य से लाया गया है। उन्होंने बताया कि नए कानून के तहत ग्रामीण परिवारों के वयस्क सदस्यों को अकुशल श्रम के लिए 125 दिन का रोजगार मिलेगा। केंद्र और राज्यों के बीच फंड साझा करने का अनुपात 60:40, जबकि पूर्वोत्तर और पहाड़ी राज्यों के लिए 90:10 रखा गया है।
संसद के भीतर और बाहर प्रदर्शन
लोकसभा में भी बिल पर चर्चा के दौरान भारी हंगामा हुआ। विपक्षी सांसदों ने गांधी जी का नाम हटाने का आरोप लगाते हुए नारेबाजी की और वॉकआउट किया। संसद के बाहर देर रात तक नारेबाजी और धरना जारी रहा।
बिल के दोनों सदनों से पारित होने के बाद अब इसे राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। वहीं विपक्ष ने साफ कर दिया है कि वह संसद के बाहर भी इस कानून के खिलाफ अपनी लड़ाई जारी रखेगा।
