एसआईआर पर सियासी संग्राम: चुनाव आयोग की घोषणा पर विपक्ष का हमला, भाजपा ने बताया देशहित का कदम

नई दिल्ली/कोलकाता। चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के दूसरे चरण की घोषणा के बाद राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। आयोग ने सोमवार को देश के 12 राज्यों में एसआईआर की प्रक्रिया शुरू करने का ऐलान किया, जिसके तहत फर्जी या दोहराए गए नामों की पहचान कर मतदाता सूची को अद्यतन किया जाएगा। लेकिन इस फैसले पर अब सियासी टकराव खुलकर सामने आ गया है।

तमिलनाडु की सत्ताधारी पार्टी डीएमके ने चुनाव आयोग की मंशा पर सवाल उठाते हुए इसे “राजनीतिक रूप से प्रेरित” बताया। पार्टी प्रवक्ता सर्वानन अन्नादुरई ने कहा कि “असम में एसआईआर क्यों नहीं किया जा रहा? 2003 को कटऑफ वर्ष क्यों रखा गया? इससे किसे फायदा होगा?” उन्होंने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग भाजपा के साथ मिलकर काम कर रहा है और उसकी विश्वसनीयता अब सवालों के घेरे में है।

वहीं, पश्चिम बंगाल में भी एसआईआर को लेकर विवाद बढ़ गया है। टीएमसी ने कहा कि वह पारदर्शी मतदाता सूची के पक्ष में है, लेकिन अगर किसी वैध मतदाता को परेशान किया गया तो पार्टी सड़कों पर उतरेगी। टीएमसी ने उम्मीद जताई कि चुनाव आयोग किसी भी राजनीतिक दबाव में काम नहीं करेगा।

इन आरोपों के जवाब में भाजपा ने विपक्ष पर तीखा हमला बोला। भाजपा प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने कहा कि “मतदाता सूची का पुनरीक्षण चुनाव आयोग का संवैधानिक दायित्व है। इंडी गठबंधन एसआईआर का विरोध कर देशहित के कामों में रोड़ा अटका रहा है।” पश्चिम बंगाल भाजपा नेता केया घोष ने आरोप लगाया कि “ममता बनर्जी की सरकार एसआईआर से इसलिए डर रही है क्योंकि उनके वोटबैंक में रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठिए शामिल हैं।”

भाजपा के वरिष्ठ नेता दिलीप घोष ने कहा कि विपक्ष हर देशहित के काम का विरोध करता है। उन्होंने दावा किया कि एसआईआर प्रक्रिया से किसी भी वैध मतदाता का नाम नहीं कटेगा, बल्कि फर्जी और अवैध नाम हटाए जाएंगे। भाजपा ने सभी राज्य सरकारों से इसमें सहयोग की अपील की है।

एसआईआर को लेकर मचे इस सियासी तूफान के बीच अब निगाहें चुनाव आयोग पर हैं, जो आने वाले दिनों में विपक्ष के सवालों और आरोपों का जवाब देने की तैयारी में है।

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