एसआईआर के तहत नाम हटाए जाने पर बंगाल के अधिकारियों की आपत्ति, वैधानिक प्रक्रिया दरकिनार करने का आरोप

कोलकाता, 27 दिसंबर । पश्चिम बंगाल में विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) प्रक्रिया के तहत मतदाता सूची के मसौदे से बड़े पैमाने पर नाम हटाए जाने को लेकर राज्य सरकार के अधिकारियों के एक संगठन ने गंभीर चिंता जताई है। संगठन ने आरोप लगाया है कि निर्वाचन पंजीकरण अधिकारियों (ईआरओ) की वैधानिक भूमिका को नजरअंदाज करते हुए ‘‘स्वतः प्रणाली-चालित’’ तरीके से मतदाताओं के नाम हटाए गए हैं।

‘डब्ल्यूबीसीएस (एग्जीक्यूटिव) ऑफिसर्स एसोसिएशन’ ने राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी को सौंपे ज्ञापन में कहा कि मसौदा सूची के प्रकाशन की तारीख पर बड़ी संख्या में ऐसे मतदाताओं के नाम हटा दिए गए, जिनके गणना फॉर्म (ईएफ) मृत्यु, प्रवास या अनुपस्थिति जैसे आधारों पर वापस नहीं आए थे।

निर्वाचन आयोग द्वारा एसआईआर प्रक्रिया पूरी होने के बाद 16 दिसंबर को राज्य की मतदाता सूची का मसौदा प्रकाशित किया गया था। इस सूची में मृत्यु, प्रवास और गणना फॉर्म जमा न करने जैसे कारणों से 58 लाख से अधिक मतदाताओं के नाम हटाए जाने की जानकारी दी गई है।

एसोसिएशन ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 22 का हवाला देते हुए कहा कि किसी भी मतदाता का नाम हटाने से पहले संबंधित ईआरओ द्वारा उस व्यक्ति को सुनवाई का उचित अवसर देना अनिवार्य है। संगठन का कहना है कि इतनी बड़ी संख्या में नाम एक साथ हटाना उन नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन है, जो पात्र हो सकते हैं लेकिन किसी कारणवश गणना प्रक्रिया के दौरान उपलब्ध नहीं हो पाए।

ज्ञापन में कहा गया है कि वैधानिक प्रावधानों को दरकिनार कर किए गए इस कदम से यह आशंका पैदा होती है कि भविष्य में इसके लिए ईआरओ को ही जवाबदेह ठहराया जाएगा, जबकि उन्हें अर्ध-न्यायिक सुनवाई के माध्यम से अपनी जिम्मेदारी निभाने का अवसर ही नहीं दिया गया।

एसोसिएशन के अनुसार, इस कार्रवाई से प्रभावित मतदाता ईआरओ को जिम्मेदार मान सकते हैं, जबकि पूरी प्रक्रिया में उनकी भूमिका सीमित कर दी गई है। संगठन ने पश्चिम बंगाल के मुख्य निर्वाचन अधिकारी मनोज कुमार अग्रवाल से इस मामले में सुधारात्मक कदम उठाने और स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी करने का अनुरोध किया है।

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