नयी दिल्ली, 26 दिसंबर। दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को केंद्र सरकार से सवाल किया कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में बढ़ती वायु प्रदूषण की गंभीर स्थिति को देखते हुए, आम जनता के लिए एयर प्यूरीफायर को किफायती बनाने के लिए उस पर लगाए गए जीएसटी को क्यों नहीं कम किया जा सकता।
अदालत ने यह प्रश्न तब उठाया जब केंद्र सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एन. वेंकटरमण ने बताया कि जीएसटी परिषद एक संवैधानिक निकाय है और यह केवल दिल्ली का मामला नहीं है। उन्होंने कहा कि जीएसटी एक संघीय कर है, जिसमें सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सहमति आवश्यक होती है। केंद्रीय वित्त मंत्री भी परिषद के सदस्य होते हैं और मतदान प्रत्यक्ष तौर पर होना अनिवार्य है, वीडियो कॉन्फ्रेंस से नहीं।
पीठ ने केंद्र से पूछा, ”दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता की गंभीर स्थिति को देखते हुए, एयर प्यूरीफायर पर वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को 18 प्रतिशत से घटाकर पांच प्रतिशत क्यों नहीं किया जा सकता?” न्यायालय ने कहा कि आम आदमी के लिए कीमतें 10,000 रुपये से शुरू होकर 60,000 रुपये तक होती हैं, जो कई लोगों की पहुंच से बाहर हैं। इसलिए इसे उचित स्तर पर लाना जरूरी है।
यह सुनवाई एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर हो रही थी, जिसमें केंद्र सरकार से अनुरोध किया गया था कि एयर प्यूरीफायर को “चिकित्सा उपकरण” की श्रेणी में रखा जाए और जीएसटी पांच प्रतिशत किया जाए। वर्तमान में एयर प्यूरीफायर पर 18 प्रतिशत कर लगाया गया है। अधिवक्ता कपिल मदन ने याचिका में कहा कि दिल्ली में गंभीर वायु प्रदूषण के कारण उत्पन्न संकट को देखते हुए एयर प्यूरीफायर को विलासिता की वस्तु नहीं माना जा सकता।
पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल से यह भी पूछा कि जीएसटी परिषद की बैठक आयोजित करने में क्या कठिनाई है। अदालत ने केंद्र सरकार को याचिका पर जवाब दाखिल करने के लिए 10 दिन का समय दिया और अगली सुनवाई 9 जनवरी निर्धारित की।
इससे पहले 24 दिसंबर को अदालत ने जीएसटी परिषद को निर्देश दिया था कि वह जल्द से जल्द बैठक करे और एयर प्यूरीफायर पर जीएसटी को कम करने या समाप्त करने पर विचार करे। अदालत ने इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए कहा कि यह सिर्फ कानूनी नहीं, बल्कि सामाजिक और स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों से जुड़ा मामला है।
