तिरुपति, 26 दिसंबर : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने शुक्रवार को कहा कि विज्ञान और धर्म के बीच कोई संघर्ष नहीं है, बल्कि दोनों अलग-अलग मार्गों से एक ही सत्य की खोज करते हैं। उन्होंने कहा कि धर्म को प्रायः मजहब के रूप में समझ लिया जाता है, जबकि वास्तव में वह सृष्टि के संचालन का विज्ञान है।
यहां आयोजित भारतीय विज्ञान सम्मेलन को संबोधित करते हुए भागवत ने कहा, “धर्म कोई मजहब नहीं है। यह वह नियम है जिसके अनुसार सृष्टि चलती है। कोई इसे माने या न माने, लेकिन इसके बाहर कोई भी कार्य नहीं कर सकता।” उन्होंने चेतावनी दी कि धर्म में असंतुलन विनाश का कारण बनता है।
भागवत ने कहा कि ऐतिहासिक रूप से विज्ञान ने यह मानते हुए धर्म से दूरी बनाए रखी कि वैज्ञानिक अनुसंधान में उसका कोई स्थान नहीं है, लेकिन यह दृष्टिकोण मूल रूप से गलत है। उनके अनुसार, विज्ञान और अध्यात्म के बीच वास्तविक अंतर केवल कार्यप्रणाली का है, जबकि लक्ष्य दोनों का एक ही है—सत्य की खोज।
उन्होंने वैज्ञानिक और आध्यात्मिक पद्धतियों की तुलना करते हुए कहा कि विज्ञान बाहरी अवलोकन, प्रयोग और दोहराए जा सकने वाले अनुभवों पर आधारित है, जबकि आध्यात्मिकता आंतरिक अनुभव और अनुशासित अभ्यास के माध्यम से उसी सत्य तक पहुंचने का प्रयास करती है।
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि आधुनिक विज्ञान अब चेतना को स्थानीय के बजाय सार्वभौमिक रूप में देखने लगा है, जो प्राचीन भारतीय दार्शनिक अवधारणाओं जैसे ‘सर्वं खल्विदं ब्रह्म’ और ‘प्रज्ञानं ब्रह्म’ से मेल खाता है।
धर्म और विज्ञान को समझने में भाषा की भूमिका पर जोर देते हुए भागवत ने कहा कि भारतीय भाषाएं इन अवधारणाओं को व्यक्त करने में सक्षम हैं और वैज्ञानिक व आध्यात्मिक ज्ञान आम लोगों तक उनकी मातृभाषा में पहुंचाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि व्यक्ति अपनी मातृभाषा में अवधारणाओं को अधिक प्रभावी ढंग से समझता है।
उन्होंने फिनलैंड का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां आठवीं कक्षा तक शिक्षा मातृभाषा में दी जाती है, जिससे बौद्धिक विकास को बढ़ावा मिलता है। भागवत ने कहा कि मातृभाषा में शिक्षा ज्ञान को बेहतर ढंग से ग्रहण करने में सहायक होती है।
पर्यावरणीय चुनौतियों जैसी वैश्विक समस्याओं का उल्लेख करते हुए आरएसएस प्रमुख ने कहा कि भारत को दुनिया को वैज्ञानिक और धार्मिक दृष्टिकोण प्रदान करना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत को केवल महाशक्ति बनने के बजाय ‘विश्व गुरु’ बनने की आकांक्षा रखनी चाहिए, ताकि वह मानवता को एक नई दृष्टि और दिशा दे सके।
भागवत ने कहा कि भौतिक प्रगति को धर्म के परिप्रेक्ष्य से जोड़कर भारत न केवल स्वयं सशक्त बनेगा, बल्कि वैश्विक स्तर पर सृष्टि के संरक्षण में भी योगदान दे सकेगा।
