नयी दिल्ली, 12 दिसंबर। लोकसभा में शुक्रवार को इंडिगो एयरलाइन से जुड़े परिचालन संकट का मुद्दा जोरदार तरीके से उठा। तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ सांसद सौगत रॉय ने कहा कि इंडिगो के हालिया परिचालन व्यवधानों से यात्रियों को भारी परेशानी झेलनी पड़ी, लेकिन अब तक किसी भी जिम्मेदार व्यक्ति को दंडित नहीं किया गया, जो अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने आरोप लगाया कि संकट के दौरान सरकार “मूकदर्शक” बनी रही और कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया।
सदन में कांग्रेस सांसद शफी परांबिल द्वारा पेश किए गए एक गैर-सरकारी विधेयक पर चर्चा में भाग लेते हुए रॉय ने कहा कि नागर विमानन मंत्रालय का हवाई किरायों पर अब कोई नियंत्रण नहीं रह गया है और उसके अधिकार सीमित हो गए हैं। उन्होंने दावा किया कि इंडिगो संकट में गंभीर अनियमितताएँ हुईं और सरकार ने स्थिति पर आवश्यक सख्ती नहीं दिखाई।
उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि इस मामले में “घोटाला” हुआ है तथा भाजपा को बताना चाहिए कि संबंधित एयरलाइन से उसे कितना चंदा प्राप्त हुआ। रॉय ने 1995 में विमान किरायों का विनियमन खत्म करने को एक बड़ी गलती करार दिया।
चर्चा में कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर ने भी सरकार पर निशाना साधा और कहा कि इंडिगो संकट सरकार की पूर्ण विफलता का उदाहरण है। उन्होंने सुझाव दिया कि विमानन क्षेत्र में कुछ कंपनियों द्वारा बनाए जा रहे एकाधिकार को खत्म करने के लिए ठोस और साहसिक कदम उठाए जाएँ।
द्रमुक सांसद अरुण नेहरू ने कहा कि सरकार ने कंपनी को पहले ही नियमों का पालन करने के लिए आगाह किया था, लेकिन कंपनी ने विमानन नियमों की अवहेलना की। उन्होंने अमेरिका का उदाहरण देते हुए कहा कि वहाँ चार कंपनियों के बीच बाजार हिस्सेदारी संतुलित है, जबकि भारत में स्थिति इसके बिल्कुल उलट है।
भाजपा सांसद जगदंबिका पाल ने भी कुछ विमानन कंपनियों की कार्यशैली की आलोचना की और कहा कि वे “राजशाही” जैसा व्यवहार करती हैं और यात्रियों की परेशानियों की परवाह नहीं करतीं। उन्होंने दावा किया कि 2014 से पहले विमानन क्षेत्र एक “इलीट क्लब” था, जबकि अब इसे आम आदमी के लिए सुलभ बनाया गया है।
सदन में इस मुद्दे पर हुई चर्चा से संकेत मिला कि विमानन क्षेत्र की अव्यवस्थाओं, किराया नियंत्रण, नियमों के पालन और यात्रियों की सुरक्षा व सुविधा को लेकर कई दलों के सांसद चिंतित हैं और सुधार की आवश्यकता महसूस कर रहे हैं।
