शाहजहाँपुर। जिले के सैकड़ों शिक्षकों की चिंताओं को सामने रखते हुए एक प्रतिनिधिमंडल ने सोमवार को सांसद अरुण सागर के आवास पर पहुंचकर टीईटी (Teacher Eligibility Test) अनिवार्यता हटाने की मांग को लेकर विस्तृत ज्ञापन सौंपा। शिक्षकों ने कहा कि उच्चतम न्यायालय द्वारा 1 सितम्बर 2025 को दिए गए निर्णय के बाद 27 जुलाई 2011 से पूर्व नियुक्त शिक्षकों पर दो वर्ष के भीतर टीईटी उत्तीर्ण करना अनिवार्य कर दिया गया है, जो उनके लिए एक बड़ा मानसिक दबाव और असमानता की स्थिति पैदा करता है।
प्रतिनिधिमंडल में शामिल शिक्षकों ने बताया कि वे लंबे समय से शिक्षा विभाग में सेवा दे रहे हैं और नियुक्ति के समय उन्हें टीईटी परीक्षा की कोई शर्त नहीं बताई गई थी। ऐसे में अब इस अनिवार्यता को लागू करना उनके साथ अन्याय है। शिक्षकों का कहना है कि यदि कोई शिक्षक टीईटी पास नहीं कर पाता, तो उसे अनिवार्य सेवानिवृत्ति देना उनके संवैधानिक अधिकारों का हनन होगा। कई शिक्षकों ने बताया कि सेवा के इतने वर्षों बाद अचानक परीक्षा की बाध्यता लागू करना न केवल अव्यावहारिक है, बल्कि शिक्षकों के मनोबल को भी गिराने वाला कदम है।
शिक्षकों की प्रमुख मांगें
शिक्षकों ने ज्ञापन में स्पष्ट किया कि—
1-भारत सरकार के अधीन 25 अगस्त 2010 तथा उत्तर प्रदेश सरकार के अधीन 27 जुलाई 2011 से पहले नियुक्त सभी शिक्षकों को टीईटी उत्तीर्ण करने की अनिवार्यता से मुक्त किया जाए।
2-सेवा निरंतरता और पदोन्नति पर इस नियम का कोई प्रतिकूल प्रभाव न पड़े।
3-पुराने नियुक्ति नियमों के आधार पर ही शिक्षकों को उनके अधिकार और सुविधाएँ मिलती रहें।
सांसद अरुण सागर का आश्वासन
सांसद अरुण सागर ने प्रतिनिधिमंडल की बात ध्यानपूर्वक सुनी और कहा कि शिक्षकों की मांग पूरी तरह न्यायोचित है तथा वे इसे प्रधानमंत्री और संबंधित मंत्रालय तक पहुंचाएंगे। उन्होंने कहा कि वे सदैव जिले की समस्याओं—चाहे वे रेलवे सुविधाओं से जुड़ी हों या विकास कार्यों से—को संसद में मजबूती से उठाते रहे हैं और आगे भी उठाते रहेंगे।
सांसद ने आश्वासन दिया कि वे शिक्षकों की इस समस्या का समाधान कराने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे और सरकार के सामने इसे गंभीरता से रखेंगे।
शिक्षकों ने सांसद का आभार व्यक्त करते हुए भरोसा जताया कि उनकी समस्या का समाधान जल्द होगा।
