पश्चिम बंगाल: बाबरी मस्जिद निर्माण की घोषणा करने वाले विधायक हुमायूं कबीर को तृणमूल ने निलंबित किया

बहरामपुर। पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने मुर्शिदाबाद जिले के विधायक हुमायूं कबीर को निलंबित कर दिया है। यह कार्रवाई तब की गई जब कबीर ने बाबरी मस्जिद के निर्माण की घोषणा कर विवाद खड़ा किया। पार्टी ने उनके कदम को “सांप्रदायिक राजनीति” करार दिया।

कबीर ने निलंबन के तुरंत बाद घोषणा की कि वह विधायक पद से इस्तीफा देंगे और इस महीने के अंत में अपनी नई पार्टी बनाएंगे। उन्होंने कहा कि वे प्रस्तावित कार्यक्रम को बढ़ाएंगे, चाहे उन्हें गिरफ्तार किया जाए या उन्हें जान से मारने की धमकी दी जाए।

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस मामले पर सीधे टिप्पणी किए बिना कबीर पर तीखा हमला किया। उन्होंने उन्हें “मीरजाफर” करार देते हुए आरोप लगाया कि उन्होंने सांप्रदायिक तनाव भड़काने के लिए भाजपा से पैसा लिया। तृणमूल के वरिष्ठ नेता फिरहाद हाकिम ने कहा कि कबीर सांप्रदायिक राजनीति में लिप्त हैं और उनका पार्टी से कोई संबंध नहीं रहेगा।

हाकिम ने यह भी कहा कि मस्जिद का निर्माण कोई व्यक्तिगत कार्य हो सकता है, लेकिन सांप्रदायिक उकसावे का प्रयास पार्टी के लिए स्वीकार्य नहीं है। उन्होंने स्पष्ट किया कि तृणमूल कांग्रेस राज्य में शांति बनाए रखने के लिए काम कर रही है।

कबीर ने तृणमूल के इस कदम को “जानबूझकर अपमान” बताया और कहा कि वे शुक्रवार या सोमवार को विधानसभा सदस्यता से इस्तीफा देंगे। उन्होंने यह भी कहा कि उनका नया संगठन अगले विधानसभा चुनाव में 294 में से 135 सीटों पर उम्मीदवार उतारेगा।

मुर्शिदाबाद जिले में राजनीतिक तापमान पहले से ही उच्च है। वर्ष की शुरुआत में वक्फ संशोधन अधिनियम को लेकर विरोध प्रदर्शन हुए थे, जिनमें अशांति देखी गई थी। राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस ने प्रशासन को पत्र लिखकर कबीर को ऐहतियाती हिरासत में लेने की सिफारिश की थी।

कबीर ने यह भी चेतावनी दी कि यदि प्रशासन ने शिलान्यास कार्यक्रम को रोकने की कोशिश की, तो एनएच-12 जाम किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि उन्हें न्यायपालिका पर भरोसा है और वे धरने पर बैठकर गिरफ्तारी देंगे।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार, इस कदम से तृणमूल को चुनावों से पहले एकजुट रहने में मदद मिल सकती है। हालांकि, कबीर फिलहाल आत्मसमर्पण के बजाय टकराव की रणनीति पर चल रहे हैं। उन्होंने तृणमूल पर दोहरे मानदंड अपनाने का आरोप लगाते हुए कहा कि पार्टी अल्पसंख्यकों को मूर्ख बना रही है और उसकी आरएसएस-भाजपा के साथ मिलीभगत है।

कबीर पहले कांग्रेस, भाजपा और तृणमूल में रह चुके हैं। 2015 में उन्होंने मुख्यमंत्री की आलोचना की थी, जिसके बाद तृणमूल ने उन्हें छह साल के लिए निष्कासित किया था। 2016 में उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा और हार गए। बाद में वे कांग्रेस और फिर भाजपा में शामिल हुए, लेकिन चुनाव हारने के बाद तृणमूल में लौट आए।

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