देश में न्यायाधीशों की सेवा आयु बढ़ाने का कोई प्रस्ताव नहीं : सरकार ने राज्यसभा में किया स्पष्ट

नई दिल्ली, 4 दिसंबर। केंद्र सरकार ने बृहस्पतिवार को राज्यसभा में स्पष्ट किया कि देश की विभिन्न अदालतों में न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति आयु बढ़ाने का कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है। विधि एवं न्याय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने यह जानकारी भाजपा सांसद संजय सेठ के पूरक प्रश्न का उत्तर देते हुए दी।

संजय सेठ ने सरकार का ध्यान इस ओर दिलाया कि स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार के कारण देश में नागरिकों की औसत आयु बढ़ी है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि अमेरिका में सुप्रीम कोर्ट के जज आजीवन सेवा देते हैं, जबकि ब्रिटेन, बेल्जियम, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में न्यायाधीशों की आयु सीमा 70 वर्ष तक है। इसके मुकाबले भारत में जिला अदालतों के न्यायाधीश 60 वर्ष, उच्च न्यायालय के 62 वर्ष और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होते हैं।

सेठ ने पूछा कि अदालतों में लंबित मामलों के भारी बोझ को देखते हुए क्या सरकार न्यायाधीशों की सेवा अवधि बढ़ाने पर विचार कर रही है। इस पर मेघवाल ने दो टूक कहा, “अभी कोई ऐसा प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है।”

न्यायालयों पर मामले लंबित होने की समस्या पर चर्चा करते हुए मेघवाल ने बताया कि सरकार ने राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड (NJDG) के माध्यम से मामलों का विस्तृत विश्लेषण किया है। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय की एक समिति यह देखती है कि 50, 40, 30 या 20 साल से लंबित मामलों का निपटारा कैसे प्राथमिकता के आधार पर किया जाए।

सदन में कांग्रेस सांसद शक्ति सिंह गोहिल ने चिंता जताई कि देश के उच्च न्यायालयों में 297 पद खाली हैं, जिनमें गुजरात हाई कोर्ट के 16 रिक्त पद भी शामिल हैं। उन्होंने सरकार से पूछा कि इन पदों को भरने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं।

जवाब में मेघवाल ने बताया कि देश के उच्च न्यायालयों में कुल 1122 स्वीकृत पद हैं, जिनमें से 825 पद भरे हुए हैं और 297 पद खाली हैं। उन्होंने कहा कि इनमें 97 पदों पर नियुक्ति प्रक्रिया जारी है, जबकि शेष 200 पदों के लिए कॉलेजियम से प्रस्ताव आने बाकी हैं। मंत्री ने आश्वासन दिया कि जैसे ही प्रस्ताव प्राप्त होंगे, सरकार नियुक्ति प्रक्रिया पर आवश्यक कार्रवाई करेगी।

इसी दौरान आम आदमी पार्टी की सांसद स्वाति मालीवाल ने महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों पर चिंता जताते हुए पूछा कि उच्च न्यायालयों में लंबित 63 लाख मामलों को निपटाने और देश की अदालतों में खाली पड़े न्यायिक पदों को भरने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं।

मेघवाल ने बताया कि केंद्र प्रायोजित योजनाओं के तहत देशभर में फास्ट ट्रैक अदालतें और POCSO अदालतें स्थापित की गई हैं। उन्होंने कहा कि 29 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 400 ई-POCSO अदालतें और 773 फास्ट ट्रैक अदालतें कार्यरत हैं, जो गंभीर और संवेदनशील मामलों का तेजी से निपटारा कर रही हैं।

अपने लिखित उत्तर में मंत्री ने बताया कि एक दिसंबर 2025 तक अधीनस्थ न्यायालयों में लंबित मामलों की संख्या 4,80,42,720 थी। उन्होंने यह भी बताया कि जिला एवं अधीनस्थ न्यायालयों में न्यायिक अधिकारियों के कुल 25,886 स्वीकृत पदों में से 4,855 पद रिक्त हैं।

मेघवाल के अनुसार, 16 राज्यों में जिला न्यायपालिका की भर्ती राज्य लोक सेवा आयोग के माध्यम से की जाती है, जबकि शेष राज्यों में यह प्रक्रिया उच्च न्यायालयों द्वारा संचालित होती है।

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