देश में एक राष्ट्र–एक चुनाव लागू करने की संभावनाओं पर बनी उच्चस्तरीय समिति की तीन महत्वपूर्ण बैठकों का कार्यक्रम तय कर दिया गया है। समिति अब 4, 10 और 17 दिसंबर 2025 को व्यापक विचार-विमर्श के लिए बैठेगी। सूत्रों के अनुसार, इन बैठकों में चुनाव आयोग, विधि आयोग, संवैधानिक विशेषज्ञों और विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया जाएगा, ताकि इस प्रस्ताव की व्यवहार्यता और चुनौतियों पर विस्तृत चर्चा की जा सके।
सरकार का तर्क है कि लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकायों के चुनाव अलग-अलग समय पर होने से बड़े पैमाने पर खर्च, प्रशासनिक बोझ और आचार संहिता के बार-बार लागू होने से विकास कार्य बाधित होते हैं। केंद्र का मानना है कि यदि सभी चुनाव एकसाथ आयोजित हों, तो शासन अधिक सुचारु और स्थिर हो सकता है। समिति इन संभावित फायदों के साथ-साथ संवैधानिक, कानूनी और तार्किक पहलुओं का पूरा अध्ययन कर रही है।
हालांकि विपक्ष इस प्रस्ताव को लेकर बेहद सतर्क है। कई दलों ने इसे संघीय ढांचे के कमजोर होने और राज्यों की स्वायत्तता पर असर डालने वाला कदम बताया है। विपक्षी नेताओं का तर्क है कि अलग-अलग समय पर चुनाव होना भारतीय लोकतंत्र की विविधता और जनादेश की निरंतरता को सुनिश्चित करता है। कुछ पार्टियों ने यह भी कहा कि एकसाथ चुनाव कराने के लिए व्यापक संवैधानिक संशोधनों की आवश्यकता होगी, जो आसान नहीं है।
समिति ने सभी पक्षों से लिखित सुझाव भी मांगे हैं। माना जा रहा है कि दिसंबर की बैठकों में एक प्रारंभिक रिपोर्ट के मसौदे पर भी चर्चा हो सकती है। राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले महीनों में यह मुद्दा देश की राजनीति का प्रमुख विषय बनने वाला है।
