वायु प्रदूषण पर सिर्फ सर्दियों की ‘रस्मी’ सुनवाई नहीं, नियमित निगरानी जरूरी: सुप्रीम कोर्ट

Supreme Court Seeks Response on NEET-UG 2024 Paper Leak Allegations


केंद्र से मांगी अल्पकालिक–दीर्घकालिक कार्ययोजना, अगली सुनवाई 10 दिसंबर को

नयी दिल्ली, एक दिसंबर :। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में बढ़ते वायु प्रदूषण पर उच्चतम न्यायालय ने गंभीर रुख अपनाते हुए स्पष्ट कहा कि इस मुद्दे को केवल सर्दियों में होने वाली औपचारिक सुनवाई तक सीमित नहीं रखा जा सकता। न्यायालय ने निर्देश दिया है कि अब इस मामले की हर महीने कम से कम दो बार नियमित सुनवाई होगी, ताकि समस्या के वास्तविक और स्थायी समाधान तलाशे जा सकें।

मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि पराली जलाने जैसे मुद्दों को ‘‘अनावश्यक रूप से राजनीतिक या अहम का प्रश्न’’ नहीं बनाया जाना चाहिए। मुख्य न्यायाधीश ने सवाल उठाया कि यदि पराली जलाना ही मुख्य वजह है, तो कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान पराली जलने के बावजूद आसमान साफ और नीला क्यों दिखाई दे रहा था? उन्होंने स्पष्ट कहा कि वायु प्रदूषण के अन्य कारक भी गंभीर भूमिका निभाते हैं, जिन पर समान रूप से ध्यान देने की जरूरत है।

पीठ ने यह भी कहा कि किसानों पर दोष मढ़ना उचित नहीं, क्योंकि उनका न्यायालय में प्रतिनिधित्व बेहद कम है। अदालत ने केंद्र सरकार से कहा कि वह सीएक्यूएम, सीपीसीबी और अन्य एजेंसियों द्वारा उठाए गए अल्पकालिक और दीर्घकालिक कदमों का विस्तृत ब्यौरा एक सप्ताह के भीतर प्रस्तुत करे।

सुनवाई के दौरान अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने प्रमुख प्रदूषणकारकों के रूप में पराली जलाना, वाहन उत्सर्जन, निर्माण की धूल, सड़क धूल और जैविक कचरा जलाने को गिनाया। उन्होंने कहा कि सभी स्तरों पर किए गए उपायों की विस्तृत सूची अदालत को उपलब्ध कराई जा सकती है।

पीठ ने निर्देश दिया कि योगदान करने वाले प्रत्येक कारक पर किए गए नियंत्रण उपायों की रिपोर्ट शीघ्र दाखिल की जाए, ताकि आगे की रणनीति तैयार की जा सके। अदालत ने कहा कि वह यह देखना चाहती है कि योजनाएं सिर्फ कागज़ों में न रहकर वास्तविक धरातल पर लागू हों।

मुख्य न्यायाधीश ने अनियोजित शहरीकरण और बढ़ती आबादी की ओर इशारा करते हुए कहा कि देश के किसी भी शहर का विकास इतनी बड़ी जनसंख्या और घर–घर में कई वाहनों की कल्पना के साथ नहीं किया गया था। उन्होंने माना कि इस अनियोजित विकास ने जीवन की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है।

शीर्ष अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 10 दिसंबर को निर्धारित करते हुए कहा कि वायु प्रदूषण के खिलाफ निर्णायक और दीर्घकालिक समाधान के लिए निरंतर निगरानी अनिवार्य है।

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