रास में सभापति राधाकृष्णन ने किया सदस्यों से संसदीय मर्यादा की ‘लक्ष्मण रेखा’ का पालन करने का आग्रह

नयी दिल्ली, एक दिसंबर :  राज्यसभा के सभापति सी पी राधाकृष्णन ने सोमवार को उच्च सदन में अपने प्रथम संबोधन में सदस्यों से संविधान के प्रति निष्ठावान रहने और संसदीय आचरण की निर्धारित ‘लक्ष्मण रेखा’ का पालन करने की अपील की।
सोमवार को सभापति के तौर पर पहली बार सदन की कार्यवाही की अध्यक्षता कर रहे राधाकृष्णन ने अपने पहले भाषण में सदस्यों से संस्थानों का सम्मान करने और राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझने का भी आ’’ान किया।
उन्होंने सदस्यों से भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने में मदद करने का भी आग्रह किया।
उन्होंने कहा कि उच्च सदन के पास बहुत विधायी कार्य हैं और समय को लेकर सदस्यों व पीठ दोनों के सामने चुनौती होगी।
राधाकृष्णन ने कहा, “हर कोई — चाहे सभापति हों या सदस्य — हम सभी को राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझना चाहिए। भारत का संविधान और राज्यसभा के नियम हमारे संसदीय आचरण की लक्ष्मण रेखा तय करते हैं। हर सदस्य के अधिकारों की रक्षा की जाएगी, लेकिन उस लक्ष्मण रेखा के भीतर ही।”
उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अन्य सदस्यों द्वारा किए गए अभिनंदन के लिए उन्हें धन्यवाद दिया।
उन्होंने कहा, ”प्रधानमंत्री मोदी ने जो कुछ कहा, उसके लिए मैं उनका आभारी हूं। उन्होंने मेरे जीवन के कम ज्ञात पहलुओं को साझा किया है।’’
राधाकृष्णन ने कहा कि जब प्रधानमंत्री बोल रहे थे, उन्हें एक खिलाड़ी की खेल भावना के साथ अपने दिन याद आ रहे थे।
उन्होंने कहा, ”जिस तरह खिलाड़ी नियमों के अनुसार खेलते हैं, उसी तरह नेताओं को भी संविधान और संसदीय मानदंडों का पालन करना चाहिए। जिस तरह खिलाड़ी रेफरी का सम्मान करते हैं, उसी तरह हम सभी को संस्थानों का सम्मान करना चाहिए। हर कोई, चाहे वह सभापति हो या सदस्य, हम सभी को राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझना चाहिए।’’
सभापति ने कहा कि प्रश्नकाल, शून्यकाल और विशेष उल्लेख जैसी संसदीय प्रक्रियाएं प्रत्येक सदस्य को नागरिकों के महत्वपूर्ण मुद्दों को सदन में उठाने का पर्याप्त अवसर प्रदान करती हैं।
उन्होंने आग्रह किया, “हम यह सुनिश्चित करने का संकल्प लें कि इस सदन में हमारे कार्य देश के हर किसान, मजदूर, रेहड़ी-पटरी वाले, महिलाओं, युवाओं और समाज के कमजोर तबकों की आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करें। हमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़े वर्गों और अन्य वंचित वर्गों के सामाजिक न्याय और आर्थिक सशक्तीकरण के प्रति अपनी संवैधानिक प्रतिबद्धताओं को पूरा करना है।”
सभापति ने जोर देकर कहा कि सदन में सदस्यों के ”हर दिन, हर घंटे, हर मिनट, हर सेकंड’’ का उपयोग सार्थक बहस के माध्यम से हमारे लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा, ”संसदीय लोकतंत्र में, बहस और चर्चा ही एकमात्र रचनात्मक तरीका है जिसके माध्यम से हम अपने लोगों की समस्याओं का बेहतर समाधान पा सकते हैं।’’
उन्होंने राज्यसभा में नए ऐतिहासिक मील के पत्थर बनाने के लिए सदस्यों के सहयोग की मांग की।
यह देखते हुए कि भारत माता की सेवा करना उनके लिए सम्मान की बात है, उन्होंने कहा कि हर किसी को भारत की लोकतांत्रिक शक्ति पर गर्व होना चाहिए और उन्हें लोकतंत्र की माता के रूप में मनाना चाहिए।
राधाकृष्णन ने तिरुपुर से राष्ट्रीय राजधानी नयी दिल्ली तक की अपनी यात्रा को याद किया और कहा कि यह लोकतंत्र की उल्लेखनीय शक्ति को दर्शाता है।
उन्होंने कहा, ”केवल लोकतंत्र में ही कोई व्यक्ति मामूली शुरुआत से सार्वजनिक जीवन में उच्च पदों तक पहुंच सकता है।” उन्होंने कहा कि इससे वह सभापति के कर्तव्यों और जिम्मेदारियों के प्रति और अधिक जागरूक हो गए हैं।
राधाकृष्णन ने इस बात पर जोर दिया कि पूरा देश उन नीतियों पर परिपक्व विचार-विमर्श के लिए हमारी ओर देख रहा है जो हमारे भविष्य को आकार देंगी।
उन्होंने कहा, ”वरिष्ठों की सभा के सदस्य होने के नाते, हमारा धर्म लोगों की उचित आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए प्रतिबद्धता के साथ काम करना है।’’
राधाकृष्णन ने सदस्यों से कहा कि वे दूसरों की भावनाओं को ठेस न पहुंचाएं।
उन्होंने कहा, ”हमें दूसरों के अलग-अलग विचारों के प्रति सहनशीलता रखनी चाहिए। इस सदन में बोले गए शब्द नीति को आकार देते हैं, समाज का मार्गदर्शन करते हैं और हमारे करोड़ों भारतवासियों के कल्याण को प्रभावित करते हैं।’’

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