शीतकालीन सत्र से पहले वंदे मातरम को लेकर बढ़ा विवाद

नई दिल्ली: संसद का शीतकालीन सत्र सोमवार से शुरू हो रहा है, और उससे पहले ही वंदे मातरम को लेकर हंगामे की संभावना बढ़ गई है। सरकार की ओर से रविवार को सर्वदलीय बैठक बुलाई गई, जिसमें इस मुद्दे पर चर्चा हुई। केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने बैठक के बाद कहा कि वंदे मातरम बहुत महत्वपूर्ण है, लेकिन इसे किसी राजनीतिक एजेंडा के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।

रिजिजू ने कहा कि “वंदे मातरम हमारी आजादी की लड़ाई का प्रतीक रहा है। बंकिम चंद्र चटर्जी ने इसे लिखा था और अब इसके 150 साल पूरे हो गए हैं। यह कोई राजनीतिक एजेंडा नहीं है। अगर संसद में चर्चा करना पड़े तो हम इसे सभी पार्टियों के सामने रखेंगे।” उन्होंने यह भी कहा कि पूरे देश में वंदे मातरम को सम्मान प्राप्त है और इस पर सभी पार्टियों के साथ मिलकर चर्चा करना चाहते हैं।

हालांकि, विवाद मौलाना महमूद मदनी के बयान के बाद बढ़ गया। भोपाल में जमीयत उलेमा-ए-हिंद के प्रमुख मदनी ने कहा था कि “मुर्दा कौमें सरेंडर करती हैं। अगर कहा जाएगा ‘वंदे मातरम’ बोलो, तो वे बोलना शुरू कर देंगी। जिंदा कौम हालात का मुकाबला करती है।” उनके इस बयान की राजनीतिक दलों ने कड़ी आलोचना की।

वहीं, कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने भी संसद में वंदे मातरम पर रोक का विरोध किया। टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने 26 नवंबर को कहा कि “जय हिंद और वंदे मातरम हमारा राष्ट्रीय गीत और स्वतंत्रता का नारा हैं। इससे जो टकराएगा वह चूर-चूर हो जाएगा।”

कांग्रेस की प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने 27 नवंबर को एक वीडियो जारी कर कहा कि राज्यसभा की बुलेटिन में बताया गया कि सदन में ‘जय हिंद’ और ‘वंदे मातरम’ का प्रयोग नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा, “अंग्रेजों को भी इन नारों से दिक्कत थी, अब भाजपा को भी? किस मिट्टी के बने हैं वे लोग जिन्हें आजादी के दो सबसे प्रसिद्ध नारों से आपत्ति है?”

शीतकालीन सत्र में यह मुद्दा विपक्ष और सरकार के बीच गरमागरम बहस का कारण बन सकता है। सरकार इसे ऐतिहासिक और सम्मानजनक मामला बताकर विवाद को कम करने का प्रयास कर रही है, जबकि विपक्ष इसे लोकतांत्रिक अधिकार और राष्ट्रगान की आत्मा से जोड़कर उठा सकता है।

Related Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *