देश के अगले प्रधान न्यायाधीश के रूप में जस्टिस सूर्यकांत 24 नवंबर 2025 को शपथ लेंगे। हरियाणा के हिसार जिले के छोटे-से गांव पेटवाड़ से निकलकर देश की न्यायपालिका के सर्वोच्च पद तक पहुंचने की उनकी यात्रा संघर्ष, संकल्प और कड़ी मेहनत की मिसाल है। खेतों में काम करने वाले एक सामान्य परिवार के किशोर से लेकर सुप्रीम कोर्ट के 53वें चीफ जस्टिस बनने तक का उनका सफर कई युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत है।
10 फरवरी 1962 को जन्मे सूर्यकांत पांच भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। पिता मदनगोपाल शास्त्री संस्कृत के शिक्षक और माता शशि देवी गृहिणी थीं। बचपन कठिनाइयों में बीता—सरकारी स्कूलों की साधारण व्यवस्था, घर में सीमित संसाधन और खेतों में काम। लेकिन किशोर सूर्यकांत में अपनी किस्मत बदलने की दृढ़ इच्छाशक्ति थी। कॉलेज तक आते-आते वह पढ़ाई में गंभीर हुए और कानून को अपना भविष्य चुना। 1984 में एमडीयू, रोहतक से एलएलबी की डिग्री लेकर उन्होंने हिसार अदालत से अपने कानूनी करियर की शुरुआत की।
एक साल बाद वह पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट पहुंचे और यहीं उनकी प्रतिभा उभरकर सामने आई। महज 38 वर्ष की उम्र में 2000 में वह हरियाणा के सबसे युवा महाधिवक्ता बने। 2004 में उन्हें हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया। 2018 में वे हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने और 2019 में सुप्रीम कोर्ट पहुंचे।
सुप्रीम कोर्ट में रहते हुए उन्होंने कई महत्वपूर्ण मामलों में भूमिका निभाई—अनुच्छेद 370 पर संविधान पीठ का हिस्सा रहे, ओआरओपी को संवैधानिक रूप से वैध माना, महिलाओं को सेना में समान अवसरों के समर्थन में निर्णय दिए और दिल्ली आबकारी मामले में अरविंद केजरीवाल को जमानत देने वाली पीठ में शामिल रहे। असम में नागरिकता से जुड़े धारा 6ए की वैधता को बरकरार रखने वाले निर्णय में भी वे प्रमुख रूप से शामिल थे।
न्यायिक जिम्मेदारियों के बीच सूर्यकांत साहित्य और पत्रकारिता के भी प्रशंसक रहे। उनकी कविता ‘मेंढ पर मिट्टी चढ़ा दो’ कॉलेज के समय में बेहद लोकप्रिय हुई। 1988 में उनकी पुस्तक ‘एडमिनिस्ट्रेटिव जियोग्राफी ऑफ इंडिया’ प्रकाशित हुई। पर्यावरण संरक्षण और खेती से उनका गहरा लगाव है।
हालांकि करियर में कुछ विवाद भी आए—2012 और 2017 में उन पर कदाचार के आरोप लगे, लेकिन जांच में ये सिद्ध नहीं हुए।
परिवार की बात करें तो उनकी पत्नी सविता शर्मा शिक्षिका रहीं और दोनों बेटियां कानून में उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही हैं।
गांव से उठकर देश की सुप्रीम कोर्ट की कमान संभालने तक का जस्टिस सूर्यकांत का सफर बताता है कि दृढ़ता, मेहनत और ईमानदारी जीवन को नई दिशा दे सकती है।
