बिहार सरकार सभी 38 जिलों में ‘सनातन धर्म’ प्रसार के लिए संयोजक नियुक्त करेगी, बीएसआरटीसी की बड़ी पहल

पटना। बिहार सरकार के अधीन कार्यरत बिहार राज्य धार्मिक न्यास परिषद (बीएसआरटीसी) ने राज्य भर में ‘सनातन धर्म’ के प्रचार-प्रसार को मजबूत करने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है। परिषद ने निर्णय लिया है कि बिहार के सभी 38 जिलों में संयोजक नियुक्त किए जाएंगे, जो अपने-अपने क्षेत्रों में पंजीकृत मंदिरों और मठों के साथ समन्वय स्थापित कर धार्मिक गतिविधियों को सुव्यवस्थित करेंगे।

परिषद के अध्यक्ष रणबीर नंदन ने बताया कि बीएसआरटीसी के अधीन वर्तमान में 2,499 मंदिर और मठ पंजीकृत हैं। उन्होंने कहा कि प्रत्येक जिले में एक संयोजक नामित किया जाएगा, जिसकी प्रक्रिया एक से दो दिनों में शुरू हो जाएगी। महत्वपूर्ण बात यह है कि संयोजकों का चयन केवल महंतों या मुख्य पुजारियों में से ही किया जाएगा, ताकि प्रशासनिक समन्वय के साथ धार्मिक परंपराओं की सही समझ सुनिश्चित हो सके।

नंदन के अनुसार, संयोजक यह सुनिश्चित करेंगे कि सभी पंजीकृत मंदिर और मठ हर महीने पूर्णिमा को ‘सत्यनारायण कथा’ और अमावस्या को ‘भगवती पूजा’ अनिवार्य रूप से करें तथा इन पूजाओं के धार्मिक महत्व का संदेश आम जनता तक पहुंचाएं। इसके साथ ही लोगों को अपने घरों में भी इन पूजाओं के आयोजन के लिए प्रेरित किया जाएगा। प्रत्येक धार्मिक स्थल में ‘अखाड़ों’ के लिए संस्कृति अभ्यास का एक निर्धारित स्थान बनाने पर भी जोर दिया जाएगा।

परिषद का मानना है कि मंदिरों और मठों की भूमिका केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि उन्हें सामाजिक गतिविधियों और सामाजिक सुधार अभियानों में भी आगे आना चाहिए। नंदन ने कहा कि सनातन धर्म से जुड़े त्योहार और धार्मिक आयोजन समाज में सद्भाव, भक्ति और सामुदायिक सहभागिता की जीवंत अभिव्यक्ति हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस बयान का भी उल्लेख किया, जिसमें केंद्र सरकार द्वारा छठ पूजा को यूनेस्को की सांस्कृतिक विरासत सूची में शामिल कराने के प्रयास की बात कही गई थी।

बीएसआरटीसी आने वाले महीनों में राजगीर में ‘सनातन धर्म’ पर एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित करने की भी तैयारी कर रही है। इसके अतिरिक्त परिषद एक धार्मिक कैलेंडर जारी करने जा रही है, जिसमें सभी प्रमुख त्योहारों, पूजा-अनुष्ठानों और धार्मिक गतिविधियों का विस्तृत विवरण होगा। यह कैलेंडर पंजीकृत मंदिरों और मठों के माध्यम से राज्यभर में वितरित किया जाएगा।

परिषद की यह पहल बिहार में धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों को एक नए संगठित स्वरूप में आगे बढ़ाने वाला कदम माना जा रहा है।

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