“देश के लिए जो कर सकता था, किया” – न्यायमूर्ति गवई भावुक विदाई के साथ न्यायालय से हुए रुखसत


विदाई समारोह में कहा— “मैं न्याय का विद्यार्थी बनकर जा रहा हूँ”

नयी दिल्ली, 21 नवंबर  — भारत के निवर्तमान प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी. आर. गवई ने शुक्रवार को अपने अंतिम कार्यदिवस पर भावुक विदाई के बीच कहा कि वह अदालत कक्ष से “पूरी संतुष्टि” के साथ विदा हो रहे हैं। लगभग चार दशक लंबी अपनी न्यायिक यात्रा को याद करते हुए उन्होंने कहा कि वह अदालत को एक “न्याय के विद्यार्थी” के रूप में छोड़ रहे हैं और संतोष है कि उन्होंने देश के लिए अपनी पूरी क्षमता से काम किया।

सुप्रीम कोर्ट में आयोजित रस्मी विदाई में न्यायमूर्ति गवई ने कहा,
“जब मैं इस अदालत कक्ष से आखिरी बार निकल रहा हूँ, तो पूरी संतुष्टि के साथ निकल रहा हूँ—इस संतोष के साथ कि मैंने इस देश के लिए जो कुछ भी कर सकता था, वह किया है।’’
यह कहते हुए वह visibly हरकंपित नजर आए। अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि और कपिल सिब्बल द्वारा सुनाई गई कविताओं और अधिवक्ताओं के स्नेहपूर्ण शब्दों ने समारोह को और भावनात्मक बना दिया।

दूसरे दलित और पहले बौद्ध प्रधान न्यायाधीश

न्यायमूर्ति गवई, न्यायमूर्ति के.जी. बालकृष्णन के बाद देश के दूसरे दलित और पहले बौद्ध प्रधान न्यायाधीश रहे। अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि उनकी न्यायिक सोच डॉ. बी. आर. आंबेडकर के आर्थिक और राजनीतिक न्याय के सिद्धांतों से गहराई से प्रभावित रही। उन्होंने बताया कि उनके पिता आंबेडकर के करीबी सहयोगी थे, जिसका प्रभाव उनके पूरे करियर में झलकता रहा।

संविधान, बराबरी और न्याय—न्यायमूर्ति गवई का न्यायिक दर्शन

उन्होंने कहा,
“मेरा विश्वास हमेशा रहा है कि हर न्यायाधीश और हर वकील संविधान की समानता, न्याय, स्वतंत्रता और बंधुत्व की मूल भावना से प्रेरित रहता है। मैंने हमेशा संविधान के दायरे में रहकर अपना कर्तव्य निभाया।”

न्यायमूर्ति गवई ने बताया कि उन्होंने अपने कई फैसलों में मौलिक अधिकारों और राज्य नीति के निदेशक सिद्धांतों के बीच संतुलन साधने की कोशिश की। उन्होंने पर्यावरण और पारिस्थितिकी को लेकर विशेष संवेदनशीलता दिखाई।
“पर्यावरण और वन्यजीवन हमेशा मेरे दिल के करीब रहे हैं। मैंने नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करते हुए पर्यावरण संरक्षण को भी सुनिश्चित करने का प्रयास किया।”

40 साल का सफर—वकील से भारत के प्रधान न्यायाधीश तक

न्यायमूर्ति गवई ने 1985 में वकालत शुरू की। 2003 में उन्हें मुंबई उच्च न्यायालय में अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया और 2005 में स्थायी न्यायाधीश बने। 24 मई 2019 को वह सुप्रीम कोर्ट पहुंचे और 14 मई 2025 को उन्होंने प्रधान न्यायाधीश के रूप में शपथ ली।
अपने करियर को याद करते हुए उन्होंने कहा,
“मैं 1985 में लॉ स्कूल में विद्यार्थी के तौर पर आया था। आज भी, जब मैं पद छोड़ रहा हूँ, तो न्याय के विद्यार्थी के रूप में जा रहा हूँ।”

सहकर्मियों और अधिवक्ताओं ने की जमकर सराहना

नवनियुक्त प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा,
“वह केवल सहकर्मी नहीं, मेरे भाई और विश्वस्त रहे। उनकी ईमानदारी और धैर्य अद्भुत था।”

अटॉर्नी जनरल वेंकटरमणि ने कहा कि न्यायमूर्ति गवई “न्यायपालिका के भूषण” हैं, जिन्होंने अदालत को “सजाया और समृद्ध” किया।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने उन्हें “एक ऐसा व्यक्ति जो कभी नहीं बदलता” बताते हुए उनके हालिया फैसलों में “भारतीयता की ताजी हवा” की सराहना की।

वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि गवई की नियुक्ति सामाजिक बदलाव का प्रतीक है। उन्होंने याद किया कि गवई अपनी सादगी के लिए जाने जाते हैं—
“वह अपने गांव बिना सुरक्षा के गए और कहा कि यदि अपने ही गांव में मुझे कोई मार दे, तो मैं जीने का हकदार नहीं।”

न्यायमूर्ति गवई शुक्रवार को अंतिम बार कार्यरत रहे और 23 नवंबर 2025 को औपचारिक रूप से पद छोड़ देंगे। अदालत से जाते हुए उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा—
“बहुत-बहुत धन्यवाद… मैं संतुष्टि और कृतज्ञता के साथ जा रहा हूँ।”

उनकी विदाई सुप्रीम कोर्ट के लिए एक युग के समापन की तरह मानी जा रही है, जिसमें उन्होंने न्याय, संवैधानिक मूल्यों और पर्यावरण के प्रति गहरी प्रतिबद्धता की छाप छोड़ी।

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