जेएनयू छात्र संघ चुनाव में वाम एकता का दबदबा, अभाविप को करारी हार

नयी दिल्ली, 6 नवंबर – जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में वामपंथी छात्र संगठनों ने एक बार फिर अपना वर्चस्व कायम करते हुए छात्र संघ चुनाव में केंद्रीय पैनल के सभी चार पदों पर जीत हासिल की है। आरएसएस समर्थित अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (अभाविप) को इस चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा।

चुनाव पैनल के अनुसार, ‘ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा)’, ‘स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई)’ और ‘डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स फेडरेशन (डीएसएफ)’ के गठबंधन ‘वाम एकता’ ने अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, महासचिव और संयुक्त सचिव—चारों पद अपने नाम किए।

सभी चार पदों पर वामपंथी उम्मीदवारों की जीत

वाम गठबंधन की उम्मीदवार अदिति मिश्रा ने अभाविप के विकास पटेल को 449 मतों के अंतर से हराकर अध्यक्ष पद जीत लिया। उपाध्यक्ष पद पर किझाकूट गोपिका बाबू ने तान्या कुमारी को मात दी।
महासचिव पद पर सुनील यादव ने राजेश्वर कांत दुबे को हराया, जबकि दानिश अली ने अभाविप के उम्मीदवार अनुज को पराजित कर संयुक्त सचिव पद जीता।

चुनाव परिणामों के बाद वाम एकता समर्थकों में उत्साह का माहौल देखा गया। छात्र-छात्राओं ने परिसर में नारेबाजी की और ढोल-नगाड़ों के साथ अपनी जीत का जश्न मनाया।

मतदान में रही जोरदार भागीदारी

इस वर्ष लगभग 9,043 छात्र मतदान के लिए पात्र थे, जिनमें से 67 प्रतिशत ने मतदान किया। यह पिछली बार के 70 प्रतिशत मतदान से थोड़ा कम रहा, लेकिन छात्र भागीदारी उत्साहजनक रही।
चुनाव के दिन जेएनयू परिसर में छात्रावासों और अकादमिक ब्लॉकों के बाहर लंबी कतारें लगी रहीं। कई स्थानों पर छात्र संगठन अपने-अपने नारों, पोस्टरों और गीतों के जरिए माहौल को चुनावी रंग में रंगे हुए थे।

अभाविप के लिए झटका, वाम एकता की पुनः वापसी

यह परिणाम अभाविप के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। पिछले साल अभाविप के वैभव मीणा ने संयुक्त सचिव पद जीतकर एक दशक बाद केंद्रीय पैनल में संगठन की वापसी कराई थी। इससे पहले, 2015 में अभाविप के सौरभ शर्मा ने जीत हासिल की थी, जो संगठन की 14 साल की सूखे के बाद पहली जीत थी।
अभाविप की अध्यक्ष पद पर आखिरी जीत वर्ष 2000-01 में हुई थी, जब संदीप महापात्रा ने वामपंथियों के प्रभुत्व को तोड़ा था।

वाम एकता की इस वर्ष की जीत ने न केवल परिसर में उनकी राजनीतिक पकड़ को फिर मजबूत किया है, बल्कि जेएनयू में वाम विचारधारा की लंबी परंपरा को भी पुनर्जीवित किया है।

“लोकतांत्रिक और वैचारिक राजनीति की जीत” – वाम एकता

वाम गठबंधन ने इस परिणाम को “लोकतांत्रिक, प्रगतिशील और छात्र हितों की राजनीति की जीत” बताया। गठबंधन के नेताओं ने कहा कि यह नतीजा विश्वविद्यालय में एकजुट छात्र राजनीति और शिक्षा, सामाजिक न्याय तथा स्वतंत्र अभिव्यक्ति की लड़ाई के समर्थन का प्रतीक है।

वहीं अभाविप ने आरोप लगाया कि विश्वविद्यालय में “वामपंथी संगठनों ने वैचारिक ध्रुवीकरण” किया और निष्पक्ष माहौल प्रभावित हुआ। संगठन ने कहा कि वह आने वाले दिनों में परिसर में छात्र हितों से जुड़े मुद्दों पर और सक्रियता से काम करेगा।

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