उत्तर प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की भारी कमी, हाईकोर्ट ने जताई गहरी चिंता


राज्य सरकार ने खुद किया खुलासा, 5,000 से अधिक डॉक्टरों के पद खाली, कोर्ट ने मांगा जिलेवार ब्योरा

लखनऊ, 14 अक्टूबर 2025: उत्तर प्रदेश के सरकारी अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों में डॉक्टरों की भारी कमी को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने गहरी चिंता व्यक्त की है। अदालत ने राज्य सरकार से पूरे प्रदेश में कार्यरत डॉक्टरों और पैरा-मेडिकल स्टाफ का जिलेवार विवरण मांगा है।

यह निर्देश न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति राजीव भारती की खंडपीठ ने विराज खंड रेजिडेंट वेलफेयर सोसाइटी की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान जारी किया। वर्ष 2017 में दायर इस याचिका में राज्य में समुचित चिकित्सा सुविधाएं सुनिश्चित करने की मांग की गई थी।

राज्य सरकार की ओर से दाखिल जवाब में बताया गया कि प्रांतीय चिकित्सा स्वास्थ्य सेवा कैडर में कुल 19,659 डॉक्टरों के पद स्वीकृत हैं, लेकिन वर्तमान में केवल 11,018 डॉक्टर ही नियमित रूप से कार्यरत हैं। इसके अलावा, 283 डॉक्टरों को पुनर्नियोजन के आधार पर और 404 को वॉक-इन इंटरव्यू के माध्यम से नियुक्त किया गया है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के तहत कार्यरत 2,508 डॉक्टरों को जोड़कर भी प्रदेश में कुल 14,213 डॉक्टर ही सेवा में हैं। इस प्रकार लगभग 5,000 पद अब भी खाली हैं।

कोर्ट ने इन आंकड़ों पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश जैसे विशाल और जनसंख्या वाले राज्य में यह स्थिति गंभीर है। नागरिकों के स्वस्थ जीवन और प्रभावी स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था के लिए पर्याप्त संख्या में योग्य डॉक्टरों की उपलब्धता अत्यंत आवश्यक है।

अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह विस्तृत और बेहतर शपथ पत्र दाखिल करे, जिसमें प्रत्येक जिले में स्थित सरकारी अस्पतालों, मेडिकल कॉलेजों, स्वीकृत पदों और वर्तमान में कार्यरत डॉक्टरों व पैरा-मेडिकल स्टाफ की पूरी जानकारी शामिल हो।

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाल स्थिति को लेकर सरकार को ठोस कदम उठाने होंगे, ताकि आम नागरिकों को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सुविधाएं मिल सकें।

इस मामले की अगली सुनवाई दो महीने बाद निर्धारित की गई है, जिसमें कोर्ट सरकार की ओर से मांगी गई विस्तृत जानकारी पर आगे विचार करेगा।

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