नई दिल्ली, 11 अक्टूबर — भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) बी.आर. गवई ने डिजिटल युग में लड़कियों की सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि ऑनलाइन उत्पीड़न, साइबर धमकी, डिजिटल स्टॉकिंग, डीपफेक तस्वीरें और व्यक्तिगत डेटा की गोपनीयता भंग होने जैसी चुनौतियों ने लड़कियों को एक अत्यधिक संवेदनशील और असुरक्षित स्थिति में ला खड़ा किया है।
सीजेआई गवई यूनिसेफ इंडिया के सहयोग से सर्वोच्च न्यायालय की किशोर न्याय समिति (जेजेसी) द्वारा आयोजित राष्ट्रीय वार्षिक हितधारक परामर्श में बोल रहे थे। कार्यक्रम का विषय था — “बालिकाओं की सुरक्षा: भारत में उनके लिए सुरक्षित और सक्षम वातावरण की ओर।”
उन्होंने कहा कि इन चुनौतियों से निपटने के लिए विशेष कानून बनाए जाने की जरूरत है और साथ ही कानून प्रवर्तन एजेंसियों और नीति निर्धारकों को इस संदर्भ में विशेष प्रशिक्षण देने की आवश्यकता है।
गवई ने कहा, “संवैधानिक और कानूनी संरक्षण के बावजूद देश भर में कई बालिकाएं अभी भी अपने मौलिक अधिकारों से वंचित हैं। उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य और जीवन निर्वाह के बुनियादी साधनों तक पहुंच नहीं मिल पाती। इस असमानता और असुरक्षा के कारण वे यौन शोषण, उत्पीड़न, बाल विवाह और अन्य सामाजिक कुरीतियों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हो जाती हैं।”
प्रधान न्यायाधीश ने इस बात पर भी जोर दिया कि लड़कियों की सुरक्षा केवल उनके शरीर की रक्षा तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि उनकी आत्मा को भी मुक्त किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, “हमें ऐसा समाज बनाना है जहां लड़कियां सम्मान और आत्मविश्वास के साथ सिर ऊंचा कर चल सकें, जहां उनकी आकांक्षाएं शिक्षा, समानता और स्वतंत्रता से पोषित हों।”
गवई ने पितृसत्तात्मक सोच और गहरे जड़े रीति-रिवाजों को चुनौती देने की आवश्यकता जताई, जो लड़कियों को उनके हक से वंचित करते हैं। उन्होंने कहा, “हमें सामाजिक, सांस्कृतिक और मानसिक स्तर पर बदलाव लाने की जरूरत है, ताकि बालिकाएं भयमुक्त होकर अपने जीवन के फैसले स्वयं ले सकें।”
रवींद्रनाथ टैगोर की प्रसिद्ध कविता “Where the mind is without fear” को उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा कि जब तक देश की कोई भी लड़की भय में जी रही है — चाहे वह हिंसा, भेदभाव या अवसर की कमी का भय हो — तब तक यह सपना अधूरा रहेगा।
इस अवसर पर उन्होंने सभी संबंधित विभागों, शिक्षकों, अभिभावकों और नीति निर्माताओं से आह्वान किया कि वे मिलकर एक ऐसा वातावरण बनाएं, जिसमें बालिकाएं सुरक्षित, सशक्त और सम्मानित महसूस करें।