नई दिल्ली, भारत ने पिछले कुछ वर्षों में डिजिटल भुगतान के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति की है, जिसमें यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) ने सबसे बड़ी भूमिका निभाई है। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) और नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (NPCI) द्वारा विकसित यह प्रणाली आज देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ बन चुकी है।UPI की शुरुआत 2016 में हुई थी, जिसका उद्देश्य था कि कोई भी व्यक्ति केवल मोबाइल नंबर या यूपीआई आईडी के माध्यम से तुरंत भुगतान कर सके। आज यह सुविधा न केवल बैंकों, बल्कि छोटे दुकानदारों, सब्जी विक्रेताओं और ऑनलाइन कारोबारियों तक पहुँच चुकी है। सितंबर 2025 तक, भारत में हर महीने 14 अरब से अधिक UPI लेन-देन दर्ज किए जा रहे हैं, जिनकी कुल कीमत लगभग ₹20 लाख करोड़ से अधिक है।UPI की लोकप्रियता का मुख्य कारण इसकी सुविधा, गति और सुरक्षा है। इसमें उपयोगकर्ता को केवल एक बार बैंक खाता लिंक करना होता है, जिसके बाद वह मोबाइल ऐप जैसे Google Pay, PhonePe, Paytm या BHIM UPI के जरिए कहीं भी भुगतान कर सकता है। इसके साथ ही “Scan & Pay” फीचर ने नकदी रहित लेन-देन को आम बना दिया है।अब सरकार बायोमेट्रिक वेरिफिकेशन (फिंगरप्रिंट या फेस ऑथेंटिकेशन) के ज़रिए भुगतान की नई सुविधा शुरू करने जा रही है। इससे धोखाधड़ी के मामलों में कमी आएगी और सुरक्षा और मज़बूत होगी।आज UPI केवल भारत तक सीमित नहीं है — नेपाल, भूटान, सिंगापुर और यूएई जैसे देशों में भी भारतीय UPI स्वीकार किया जा रहा है। यह “डिजिटल इंडिया” मिशन की सबसे बड़ी सफलता मानी जा रही है, जिसने भारत को दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती डिजिटल अर्थव्यवस्था में बदल दिया है।
