नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 की संवैधानिक वैधता पर अहम टिप्पणी करते हुए इसके कुछ प्रावधानों को निजता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकारों के विरुद्ध बताया है। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने सैम हिगिनबॉटम कृषि, प्रौद्योगिकी और विज्ञान विश्वविद्यालय (SHUATS) के कुलपति और निदेशक के खिलाफ दर्ज धर्मांतरण के मामले को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की।
अदालत ने कहा कि अधिनियम की धारा 8 और 9, जो धर्मांतरण से पहले और बाद में घोषणाओं व जांच की प्रक्रिया तय करती हैं, अत्यधिक जटिल और राज्य की अत्यधिक दखल वाली हैं। पीठ ने इन प्रावधानों को संविधान द्वारा प्रदत्त निजता और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों के विरुद्ध बताया। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस तरह की कानूनी प्रक्रियाएं व्यक्ति के धर्म परिवर्तन की इच्छा को अवैध रूप से कठिन बना सकती हैं।
हालांकि पीठ ने यह स्पष्ट किया कि वह इस निर्णय में कानून की पूरी वैधता पर औपचारिक निर्णय नहीं दे रही है, लेकिन उसने यह अवश्य कहा कि आपराधिक मामलों में इन मुद्दों की अनदेखी नहीं की जा सकती। कोर्ट ने चेतावनी दी कि अजनबियों द्वारा मुकदमा चलाने की अनुमति देना आपराधिक कानून को उत्पीड़न का साधन बना सकता है।
अंत में, न्यायालय ने संविधान की प्रस्तावना और अनुच्छेद 25 का हवाला देते हुए याद दिलाया कि हर व्यक्ति को धर्म अपनाने, मानने और प्रचार करने की स्वतंत्रता है, जो कि सार्वजनिक व्यवस्था और नैतिकता के अधीन होती है।
