‘सिर तन से जुदा’ नारा कानून व्यवस्था के लिए चुनौती, जमानत खारिज: इलाहाबाद उच्च न्यायालय

प्रयागराज, 18 दिसंबर 2025। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि ‘गुस्ताख-ए-नबी की एक ही सजा, सिर तन से जुदा, सिर तन से जुदा’ नारा लोगों को विद्रोह के लिए उकसाने वाला है और यह भारत की एकता एवं कानून व्यवस्था के लिए गंभीर चुनौती प्रस्तुत करता है।

यह टिप्पणी अदालत ने इत्तेफाक मिन्नत काउंसिल (आईएनसी) के अध्यक्ष मौलाना तौकीर रजा के आदेश पर 26 मई 2025 को बिहारीपुर में एकत्रित भीड़ द्वारा की गई हिंसा के मामले में आरोपी रिहान नामक युवक की जमानत याचिका खारिज करते हुए की। इस हिंसा में लोगों ने उक्त नारा लगाया और पुलिसकर्मियों पर हमला किया, साथ ही निजी एवं सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया।

न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल ने कहा कि यह कृत्य बीएनएस की धारा 152 के तहत दंडनीय है और इस्लाम के बुनियादी सिद्धांतों के भी खिलाफ है। अदालत ने स्पष्ट किया कि धर्म विशेष के नारे जैसे ‘अल्लाहू अकबर’, ‘सत श्री अकाल’ या ‘जय श्री राम’ सामान्यत: सम्मान व्यक्त करने के लिए होते हैं, जबकि ‘सिर तन से जुदा’ नारा हिंसक और विद्रोह उत्पन्न करने वाला है।

अदालत ने यह भी कहा कि कुरान या किसी अन्य धार्मिक ग्रंथ में इस नारे का कोई उल्लेख नहीं है, फिर भी इसका व्यापक रूप से गलत अर्थ में इस्तेमाल किया जा रहा है। बीएनएस की धारा 152 भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले अपराधों से निपटती है।

ज्ञात हो कि बरेली हिंसा के दौरान पुलिस को भीड़ ने लाठी छीनी, वर्दी फाड़ दी और पेट्रोल बम फेंके, जिससे कई पुलिसकर्मी घायल हुए। इस घटना में सात लोगों को गिरफ्तार किया गया था।

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