सबरीमला सोना मामला: भ्रष्टाचार रोधी कानून लागू होता है या नहीं, इसकी पड़ताल करे एसआईटी — केरल हाई कोर्ट

कोच्चि, 5 नवंबर — केरल उच्च न्यायालय ने बुधवार को सबरीमला मंदिर में द्वारपालक मूर्तियों और अन्य कलाकृतियों पर सोने की परत चढ़ाने के कार्य में कथित अनियमितताओं की जांच कर रहे विशेष जांच दल (एसआईटी) को निर्देश दिया कि वह यह जांच करे कि क्या इस मामले में त्रावणकोर देवस्वोम बोर्ड (टीडीबी) के किसी अधिकारी पर भ्रष्टाचार रोधी कानून के प्रावधान लागू होते हैं।

न्यायमूर्ति राजा विजयराघवन वी. और न्यायमूर्ति के. वी. जयकुमार की खंडपीठ ने कहा कि जांच के दौरान यदि किसी अधिकारी की भूमिका भ्रष्टाचार अधिनियम के तहत आती है तो कानून के अनुसार कार्रवाई की जानी चाहिए। अदालत ने कहा कि मामले में ‘‘गंभीर अनियमितताएं और संभावित गबन’’ हुए हैं, जो टीडीबी के उच्च अधिकारियों से लेकर अधीनस्थ कर्मचारियों की मिलीभगत से संभव हुए प्रतीत होते हैं।

पीठ ने कहा कि बोर्ड की कार्यवाही पुस्तिका (मिनट्स बुक) केवल जुलाई 2025 तक ही अद्यतन की गई थी और वह भी अधूरी और अनियमित पाई गई। अदालत ने कहा कि 2 सितंबर 2025 के उस आदेश का कोई रिकॉर्ड नहीं मिला, जिसके तहत चेन्नई की कंपनी स्मार्ट क्रिएशन्स को द्वारपालक मूर्तियों की मरम्मत और सोने की परत चढ़ाने की अनुमति दी गई थी। न्यायालय ने इसे ‘‘अत्यंत गंभीर चूक’’ करार देते हुए कहा कि यह लापरवाही विस्तृत जांच की मांग करती है।

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि बेंगलुरु के व्यापारी उन्नीकृष्णन पोट्टी को चेन्नई में सोने की परत चढ़ाने के काम की ‘‘खुली छूट’’ दी गई थी। पोट्टी को हाल ही में गिरफ्तार किया गया है और वह इस मामले का मुख्य आरोपी है। न्यायालय ने टिप्पणी की कि पोट्टी ने कुछ देवस्वोम अधिकारियों की मिलीभगत से ‘‘संदिग्ध गतिविधियां’’ शुरू कीं, जिनकी शुरुआत गर्भगृह के मुख्य द्वार पर सोने की परत चढ़ाने के तथाकथित प्रायोजन से हुई।

अदालत ने बताया कि 1998–99 में मैकडॉवेल एंड कंपनी लिमिटेड ने पारंपरिक विधि से करीब 30 किलोग्राम सोने का उपयोग करके मूर्तियों और द्वारों को स्वर्णिम किया था। लेकिन 2019 में आरोपियों ने बड़ी मात्रा में सोना निकाल लिया और केवल थोड़ी मात्रा में नई परत चढ़ाई।

न्यायालय ने 2019 की वास्तविक सोने की हानि का पता लगाने के लिए कलाकृतियों का वैज्ञानिक परीक्षण कराने की एसआईटी की मांग को मंजूरी दी और कहा कि यह प्रक्रिया 15 नवंबर से पहले पूरी कर ली जाए, जब भगवान अयप्पा मंदिर मंडला-मकरविलक्कु तीर्थयात्रा के लिए खुलेगा।

पीठ ने इस मामले की निगरानी के लिए एक नई रिट याचिका स्वतः संज्ञान लेकर दायर की है और कहा है कि यह जांच पारदर्शिता और जवाबदेही के साथ आगे बढ़ाई जाए।

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