सनातन विचार है एकात्म मानव दर्शन: डॉ. मोहन भागवत

जयपुर, 15 नवंबर : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने शनिवार को कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने सनातन विचार को देश, काल और परिस्थितियों के अनुरूप एकात्म मानव दर्शन का नया नाम देकर लोगों के समक्ष प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि यह दर्शन नया नहीं है, लेकिन 60 वर्ष बाद भी वर्तमान समय में पूरी दुनिया के लिए प्रासंगिक है।

एकात्म मानव दर्शन अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान द्वारा आयोजित दीनदयाल स्मृति व्याख्यान कार्यक्रम में डॉ. भागवत ने इसे संक्षेप में समझाने के लिए शब्द “धर्म” का प्रयोग किया। उन्होंने कहा, “इस धर्म का अर्थ केवल मजहब, मत, पंथ या संप्रदाय नहीं है, बल्कि इसका तात्पर्य है सबका गंतव्य समझने वाला धर्म। वर्तमान समय में दुनिया को इसी एकात्म मानव दर्शन के अनुसार चलना होगा।”

डॉ. भागवत ने कहा कि भारत में रहन-सहन, खानपान और वेशभूषा बदल गई है, लेकिन सनातन विचार अडिग रहा। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस दर्शन का मूल यह है कि सुख बाहर नहीं, बल्कि हमारे भीतर है। जब हम अंदर का सुख समझते हैं, तब हमें यह एहसास होता है कि पूरा विश्व एकात्म है। उन्होंने अतिवाद और अहंकार से बचने का संदेश देते हुए कहा कि शरीर, मन और बुद्धि की शक्ति की भी सीमाएँ होती हैं, और अपने विकास के साथ-साथ सबका हित साधना आवश्यक है।

उन्होंने विज्ञान की प्रगति की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा कि भौतिक सुख में वृद्धि हुई है, लेकिन क्या इससे मनुष्य के मन में शांति और संतोष भी बढ़ा है, यह विचारणीय है। डॉ. भागवत ने वैश्विक संसाधन असंतुलन की ओर भी संकेत किया, जिसमें चार प्रतिशत जनसंख्या 80 प्रतिशत संसाधनों का उपयोग करती है।

डॉ. भागवत ने भारत की सांस्कृतिक विविधता को भी उजागर किया, कहा कि भारत में अनेक देवी-देवता और विभिन्न रीति-रिवाज कभी झगड़े का कारण नहीं बने, बल्कि उत्सव का विषय रहे। उन्होंने जोर देकर कहा, “दुनिया जानती है कि शरीर, मन और बुद्धि का सुख होता है, लेकिन इसे एक साथ कैसे प्राप्त किया जाए, यह केवल भारत जानता है।”

कार्यक्रम की प्रस्तावना एकात्म मानव दर्शन अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान के अध्यक्ष डॉ. महेश शर्मा ने रखी।

अधिक जानकारी के लिए पढ़ते रहे : https://readnownews.in/

Related Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *