बेंगलुरु, 26 नवंबर । कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने बुधवार को संविधान दिवस के अवसर पर लोगों से अपील की कि वे ऐसे तत्वों की पहचान करें जो संविधान के बजाय मनुस्मृति को महत्व देते हैं। उन्होंने कहा कि इस तरह के ‘संविधान-विरोधी मनुवादी’ समानता और मानवाधिकारों के मूल आदर्शों के विरुद्ध हैं।
‘संविधान दिवस समारोह—2025’ का उद्घाटन करने के बाद मुख्यमंत्री ने कहा कि डॉ. भीमराव आंबेडकर द्वारा संविधान बनाने से पहले देश में एक तरह से “अलिखित मनुस्मृति का शासन” नजर आता था, जिसमें समानता और मानव गरिमा को पर्याप्त स्थान नहीं मिलता था।
सिद्धरमैया ने कहा, “मनुस्मृति में वर्णित मानव-विरोधी और समानता-विरोधी नियमों का आंबेडकर के संविधान में कोई स्थान नहीं है। इसी कारण मनुवादी हमारे संविधान का विरोध करते हैं।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि उनकी दृष्टि में मनुवादी वे लोग हैं जो मनुस्मृति को आदर्श मानकर सामाजिक संरचना तय करना चाहते हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि एक समान समाज का निर्माण करना और असमानता को समाप्त करना भारतीय संविधान तथा डॉ. आंबेडकर की प्रमुख आकांक्षा रही है। उन्होंने उपस्थित लोगों को यह भी याद दिलाया कि “हम भारत के लोग” संविधान का मूल मंत्र है, जो नागरिकों के सामूहिक अधिकार और जिम्मेदारी की भावना को दर्शाता है।
कुछ लोगों द्वारा की गई इस दलील का खंडन करते हुए कि डॉ. आंबेडकर संविधान के निर्माता नहीं थे, सिद्धरमैया ने कहा कि जाति व्यवस्था की गहरी समझ और उसके सामाजिक प्रभावों को देखते हुए ही उन्होंने संविधान में आरक्षण व्यवस्था को शामिल किया, जो सामाजिक न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
उन्होंने खेद व्यक्त किया कि स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व जैसे संवैधानिक आदर्शों के बावजूद आज भी जाति-आधारित भेदभाव समाप्त नहीं हुआ है। बसवन्ना जैसे संत-सुधारकों द्वारा जाति-व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष किए जाने के बाद भी समानता की राह लंबी है। मुख्यमंत्री ने कहा कि जब निचली जातियों को आर्थिक शक्ति मिलेगी, तभी जाति-आधारित असमानता वास्तव में कमजोर पड़ेगी।
समारोह में संविधान की मूल भावना, सामाजिक न्याय और लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत करने का संकल्प दोहराया गया।
