नयी दिल्ली, 11 दिसंबर—राष्ट्रगीत वंदे मातरम् के 150 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर राज्यसभा में हुई विशेष चर्चा का समापन करते हुए सदन के नेता और भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने केंद्र और राज्यों से आह्वान किया कि वंदे मातरम् को वह दर्जा दिया जाए, जो आज राष्ट्रगान और राष्ट्रीय ध्वज को प्राप्त है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रगीत को आज भी वह सम्मान और स्थान नहीं मिला, जिसका वह हकदार है।
नड्डा ने कहा कि पिछले दो दिनों में 80 से अधिक सदस्यों ने इस विषय पर अपने विचार रखे, जिससे स्पष्ट है कि यह मुद्दा कितना महत्वपूर्ण और समसामयिक है। उन्होंने वंदे मातरम् को ‘‘देश की आत्मा को जगाने वाला मंत्र’’ बताते हुए कहा कि आजादी की लड़ाई के अनगिनत निर्णायक क्षण इससे जुड़े हुए हैं।
वंदे मातरम् का इतिहास और संघर्ष
भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि ब्रिटिश शासन द्वारा जब अंग्रेजी राष्ट्रगीत भारत पर थोपने की कोशिश की जा रही थी, तब बंकिम चंद्र चटर्जी ने वंदे मातरम् रचा, जिसने पूरे राष्ट्र में स्वतंत्रता की भावना को सशक्त किया। उन्होंने बताया कि यह गीत इतना प्रभावशाली था कि ब्रिटिश सरकार ने इसे प्रतिबंधित कर दिया था और इसे गाने वालों को जेल भेजा जाता था।
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि
वीर सावरकर को जिन आरोपों में काला पानी भेजा गया, उनमें वंदे मातरम् के नारे लगाना भी शामिल था।
महर्षि अरविन्द को भी इसी कारण गिरफ्तार किया गया।
और जब खुदीराम बोस फांसी पर चढ़े, तो उनके अंतिम शब्द ‘वंदे मातरम्’ ही थे।
कांग्रेस पर नड्डा के आरोप
नड्डा ने जयराम रमेश द्वारा लगाए गए आरोप—कि इस चर्चा का उद्देश्य नेहरू को बदनाम करना है—पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि ‘‘हमारा उद्देश्य किसी पूर्व प्रधानमंत्री को बदनाम करना नहीं, बल्कि इतिहास के तथ्यों को सही रूप में रखना है।’’
उन्होंने कहा कि तत्कालीन शासकों ने वंदे मातरम् को उसका सही दर्जा नहीं दिया। नड्डा ने दावा किया कि जवाहरलाल नेहरू ने उर्दू लेखक सरदार जाफरी को लिखे पत्र में वंदे मातरम् की भाषा और परिकल्पना की आलोचना की थी। उन्होंने यह भी कहा कि 1937 में कांग्रेस कार्यसमिति ने वंदे मातरम् के केवल दो अंतरों को स्वीकार करने का निर्णय किया, जो इसके महत्व को कम करता है।
वंदे मातरम् को राष्ट्रगान जैसा दर्जा देने की मांग
नड्डा ने कहा कि राष्ट्रीय सम्मान अनादर निषेध कानून, 1971 में वंदे मातरम् के अपमान या न गाए जाने पर किसी दंड का प्रावधान नहीं है, जो इसकी उपेक्षा का एक और उदाहरण है। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि वंदे मातरम् को वही संवैधानिक सम्मान दिया जाए जो राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान को प्राप्त है।
उन्होंने कहा, ‘‘राष्ट्रवाद बिना शर्त होता है। वंदे मातरम् इसी राष्ट्रवाद की भावना से जुड़ा है और हर व्यक्ति को इसे सर्वोपरि रखकर आगे बढ़ना चाहिए।’’
नड्डा ने यह भी कहा कि संविधान सभा ने राष्ट्रीय चिह्न के चयन के लिए तो समिति बनाई, लेकिन राष्ट्रगान बिना विस्तृत चर्चा के ही स्वीकार कर लिया गया—जो इस बात को रेखांकित करता है कि वंदे मातरम् को वह प्रक्रिया और सम्मान नहीं मिला जिसका वह हकदार था।
नड्डा के भाषण के साथ सदन में वंदे मातरम् के 150 वर्ष पर हुई ऐतिहासिक चर्चा का समापन हुआ।
