मप्र के उच्च शिक्षा मंत्री ने राजा राममोहन राय को ‘दलाल’ बताने वाले बयान पर मांगी माफी

शाजापुर (मध्यप्रदेश), 16 नवंबर : मध्यप्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार ने रविवार को अपने विवादित बयान पर सार्वजनिक रूप से माफी मांगी, जिसमें उन्होंने देश के महान समाज सुधारक राजा राममोहन राय को अंग्रेजों का ‘दलाल’ बताया था। मंत्री परमार ने शुजालपुर से जारी किए गए वीडियो संदेश में कहा कि उनका यह बयान गलती से उनके मुंह से निकल गया और उनका उद्देश्य किसी भी ऐतिहासिक व्यक्तित्व का अपमान करना नहीं था। उन्होंने कहा, “राजा राममोहन राय एक महान समाज सुधारक थे और उनका सम्मान किया जाना चाहिए। मेरे मुंह से गलती से यह वाक्य निकल गया, जिसके लिए मुझे खेद है। मैं प्रायश्चित करता हूं।”

यह विवाद तब शुरू हुआ, जब परमार ने आदिवासी नेता और स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती पर शनिवार को आगर मालवा में आयोजित कार्यक्रम में कहा कि “राजा राममोहन राय ब्रिटिश एजेंट थे और देश में अंग्रेजों के दलाल के रूप में काम करते थे। उन्होंने धर्मांतरण को बढ़ावा देने के लिए मिशनरी स्कूलों का इस्तेमाल किया।” मंत्री ने यह भी कहा कि बिरसा मुंडा ने इस प्रक्रिया को पहचाना और अपने समुदाय की रक्षा और ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ने के लिए मिशनरी शिक्षा छोड़ दी।

सोशल मीडिया पर उनके इस बयान के तेजी से प्रसारित होने के बाद विभिन्न राजनीतिक दलों ने कड़ी निंदा की। कांग्रेस की छात्र शाखा एनएसयूआई के राष्ट्रीय प्रवक्ता विराज यादव ने इसे इतिहास की गंभीर अवहेलना करार दिया और कहा कि यह भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा है, जो देश के सच्चे नायकों की छवि धूमिल करने का काम करता है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता यश भारतीय ने भी आरोप लगाया कि भाजपा और आरएसएस की विचारधारा के लोग हमेशा समाज सुधारकों में खोट तलाशते हैं।

इतिहासकारों के अनुसार राजा राममोहन राय का जन्म 22 मई 1772 को बंगाल के राधानगर में एक रूढ़िवादी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वे आधुनिक भारत के पुनर्जागरण के जनक माने जाते हैं और भारतीय समाज में ज्ञानोदय एवं उदार सुधारवादी आधुनिकीकरण की नींव रखी। उनके प्रयासों से सामाजिक सुधार, शिक्षा और महिलाओं के अधिकारों में नए आयाम आए।

मंत्री परमार के माफी मांगने के बाद राजनीतिक और सामाजिक विवाद कुछ कम हुआ, लेकिन उनके बयान ने इतिहासकारों और समाज सुधारकों के बीच व्यापक बहस को जन्म दिया। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे विवादों से यह स्पष्ट होता है कि समाज सुधारकों और उनके योगदान के प्रति सही समझ और संवेदनशीलता आवश्यक है।

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