नई दिल्ली, 6 नवंबर : उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के पूर्व विधायक मोहम्मद अब्दुल्ला आजम खान की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने अपने खिलाफ दर्ज फर्जी दस्तावेज मामले को रद्द करने की मांग की थी। यह मामला पासपोर्ट बनवाने के लिए कथित तौर पर नकली दस्तावेजों के इस्तेमाल से जुड़ा है।
न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 23 जुलाई के आदेश में हस्तक्षेप से इनकार कर दिया। उच्च न्यायालय ने इससे पहले अब्दुल्ला खान की याचिका को खारिज करते हुए निचली अदालत को कानून के अनुसार मुकदमे की सुनवाई जारी रखने का निर्देश दिया था।
अब्दुल्ला खान, समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री आजम खान के पुत्र हैं।
सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के.एम. नटराज ने शीर्ष अदालत को बताया कि जांच पूरी हो चुकी है और मामले में दलीलों की सुनवाई की तारीख तय कर दी गई है।
पीठ ने अब्दुल्ला खान की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से कहा, “निचली अदालत को इस पर फैसला करने दीजिए। हमें इस चरण में हस्तक्षेप करने की आवश्यकता नहीं है। सुनवाई अदालत पर भरोसा रखिए, वह कानून के अनुसार निर्णय लेगी।”
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि निचली अदालत उच्च न्यायालय के आदेश से प्रभावित हुए बिना सभी बिंदुओं पर स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र होगी।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार, यह मामला जुलाई 2019 में दर्ज प्राथमिकी से संबंधित है, जिसमें आरोप लगाया गया था कि अब्दुल्ला खान ने जाली दस्तावेजों के जरिए पासपोर्ट बनवाया। प्राथमिकी के अनुसार, उनके शैक्षणिक रिकॉर्ड—विशेष रूप से उच्च माध्यमिक प्रमाणपत्र—में जन्मतिथि 1 जनवरी 1993 दर्ज है, जबकि पासपोर्ट में 30 सितंबर 1990 अंकित है।
अभियोजन पक्ष ने उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 420 (धोखाधड़ी), 471 (जाली दस्तावेज को असली के रूप में उपयोग करना) और पासपोर्ट अधिनियम की धारा 12(1)(ए) के तहत आरोप-पत्र दाखिल किया है।
इस फैसले के साथ अब्दुल्ला आजम खान को बड़ा कानूनी झटका लगा है, क्योंकि अब उन्हें निचली अदालत में मुकदमे का सामना करना होगा।
