नयी दिल्ली, 15 नवंबर। निर्वाचन आयोग ने उच्चतम न्यायालय को बताया है कि बिहार में मतदाता सूची के संशोधित संस्करण में नाम जोड़ने या हटाने के लिए आधार कार्ड को नागरिकता के प्रमाण के रूप में नहीं, बल्कि केवल पहचान सत्यापन के लिए इस्तेमाल करने के निर्देश पहले ही जारी किए जा चुके हैं। आयोग ने यह जवाब अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की ओर से दायर अंतरिम याचिका के संदर्भ में दाखिल किया है, जिसमें आधार के सीमित उपयोग को लेकर स्पष्ट दिशा-निर्देश मांगे गए थे।
शीर्ष अदालत में दाखिल हलफनामे में निर्वाचन आयोग ने कहा कि न्यायालय ने 8 सितंबर 2025 को अपने आदेश में स्पष्ट किया था कि आधार कार्ड का उपयोग केवल पहचान स्थापित करने के लिए किया जाना चाहिए, न कि नागरिकता, जन्मतिथि या निवास प्रमाण के रूप में। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (आरपीए) 1950 की धारा 23(4) इसी सिद्धांत की पुष्टि करती है।
आयोग के अनुसार, अदालत के आदेश के अनुपालन में 9 सितंबर 2025 को बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) को निर्देश भेजे गए, जिनमें साफ कहा गया कि मतदाता सूची में नाम जोड़ने या हटाने के लिए आधार को सिर्फ पहचान के प्रमाण के रूप में ही स्वीकार किया जाए। आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि आधार को नागरिकता प्रमाण के रूप में इस्तेमाल करने का कोई आधार कानूनी तौर पर उपलब्ध नहीं है।
निर्वाचन आयोग ने अपने जवाब में भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) के अगस्त 2023 के कार्यालय ज्ञापन का भी उल्लेख किया, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि आधार कार्ड न तो नागरिकता का प्रमाण है, न निवास का और न ही जन्मतिथि का। बंबई उच्च न्यायालय भी एक मामले में इसी निष्कर्ष पर पहुंच चुका है कि जन्मतिथि साबित करने का दायित्व आधार धारक पर ही होता है।
उच्चतम न्यायालय ने 7 अक्टूबर को उपाध्याय की याचिका पर नोटिस जारी किया था और यह याद दिलाया था कि अदालत पहले ही कह चुकी है कि आधार नागरिकता या निवास का प्रमाण नहीं है। यह अर्जी देशभर में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) की मांग वाली एक लंबित याचिका से जुड़ी है।
निर्वाचन आयोग ने दोहराया कि न्यायालय के निर्देशों के अनुरूप उसके सभी दिशा-निर्देश जारी किए जा चुके हैं और नियमों को लेकर किसी भी प्रकार की अस्पष्टता नहीं है।
