रांची, 15 नवंबर (भाषा): भारत के नामित प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने शनिवार को कहा कि न्यायपालिका का काम केवल विवादों का निपटारा करना नहीं है, बल्कि उसे निर्दोषों की सुरक्षा और न्याय तक तत्काल पहुँच सुनिश्चित करने पर भी ध्यान देना चाहिए। उन्होंने उच्च न्यायालयों से अपने विकास और संचालन की कल्पना आधुनिक अस्पताल के आपातकालीन विभाग की तरह करने का आग्रह किया, जिससे त्वरित, निर्णायक और प्रभावी प्रतिक्रिया सुनिश्चित हो सके।
झारखंड उच्च न्यायालय के रजत जयंती समारोह को संबोधित करते हुए न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने अपने पहले मामले को याद किया, जो दो नाबालिग बच्चों के संरक्षण से जुड़े सीमा पार विवाद और मुलाकात के अधिकार से संबंधित था। उन्होंने कहा, “न्याय केवल विवादों को सुलझाना नहीं है, बल्कि बच्चों जैसी असहाय पीड़ित स्थिति में फंसे लोगों को सुरक्षा प्रदान करना भी न्यायपालिका की जिम्मेदारी है।”
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि माता-पिता राष्ट्रीय सीमाओं और लंबी मुकदमेबाजी के कारण अलग हो गए थे, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण पहलू “प्रतिस्पर्धी न्याय क्षेत्रों और अनिश्चित भविष्य के बीच फंसे बच्चों की पीड़ा” थी। उनके अनुसार, न्यायिक संस्थाओं को सहानुभूति और संकल्प के साथ काम करना चाहिए।
उन्होंने उच्च न्यायालयों से कहा कि उनका विकास ऐसा होना चाहिए जैसे आपातकालीन वार्ड, जहाँ देरी स्वीकार्य न हो। न्यायपालिका को तकनीकी दक्षता, सुव्यवस्थित प्रक्रियाएँ और त्वरित अनुकूलन क्षमता विकसित करनी होगी, ताकि मुकदमों का निपटारा समय पर और प्रभावी ढंग से किया जा सके।
सूर्यकांत ने डिजिटल प्रौद्योगिकी के महत्व पर भी जोर दिया। उन्होंने ‘ई-फाइलिंग’ प्रणाली, डिजिटल मंच और वास्तविक समय में मुकदमों की जानकारी उपलब्ध कराने की आवश्यकता बताई, जिससे दूरदराज के क्षेत्रों में रहने वाले लोग भी न्याय तक आसानी से पहुँच सकें।
उन्होंने आगाह किया कि भारतीय अदालतों को साइबर अपराध, डिजिटल साक्ष्य, जलवायु विवाद, संसाधन संघर्ष और बढ़ते मुकदमों से निपटने के लिए तैयार रहना होगा। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि ये चुनौतियाँ पारंपरिक न्यायिक मॉडल पर पुनर्विचार की मांग करती हैं और न्यायपालिका को समयानुकूल नवाचार अपनाने होंगे।
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