चिराग पासवान की लोजपा 28 नवंबर को पटना में मनाएगी 25वां स्थापना दिवस

पटना, 24 नवंबर :  केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने सोमवार को घोषणा की कि लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) की स्थापना के 25 वर्ष पूरे होने पर इस सप्ताह पटना में समारोह आयोजित किया जाएगा।
यह घोषणा पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष एवं विधायक राजू तिवारी ने की। तिवारी चिराग पासवान के दिवंगत पिता राम विलास पासवान के पुराने सहयोगियों में रहे हैं। राम विलास पासवान ने वर्ष 2000 में लोजपा की स्थापना की थी। करीब पांच वर्ष पहले यह पार्टी दो धड़ों में बंट गई थी। तिवारी ने संवाददाताओं से कहा, ”चिराग पासवान (स्थापना दिवस समारोह में) मुख्य अतिथि होंगे। हम 28 नवंबर को सुबह करीब 11 बजे पटना के बापू सभागार में लोजपा का स्थापना दिवस मनाएंगे। इसमें हमारे विधायक और सांसद शामिल होंगे।’’
उन्होंने कहा, ”राम विलास पासवान ने वर्ष 2000 में लोजपा बनाई थी और लोजपा (रामविलास) आज बिहार की चुनावी राजनीति में अपनी स्पष्ट उपस्थिति दर्ज करा रही है।’’
तिवारी ने दावा किया कि राज्य की जनता ने चिराग पासवान के ‘बिहार प्रथम’ दृष्टिकोण पर भरोसा जताया है।
उन्होंने कहा, ”2005 के बाद से हमें सबसे अधिक विधायक मिले हैं और दो कैबिनेट मंत्री पदों की जिम्मेदारी भी सौंपी गई है।’’
बिहार में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के घटक दल के रूप में लोजपा (रामविलास) ने हालिया विधानसभा चुनाव में 28 सीट पर चुनाव लड़कर 19 पर जीत दर्ज की। पार्टी के संजय कुमार और संजय कुमार सिंह वर्तमान में बिहार सरकार में मंत्री हैं।
तिवारी ने कहा कि लोजपा (रामविलास) के नेता इस जनादेश को ”जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरने की चुनौती’’ के रूप में ले रहे हैं।
अक्टूबर 2021 में राम विलास पासवान के निधन के कुछ महीनों बाद उनके छोटे भाई पशुपति कुमार पारस ने पार्टी में विभाजन कर दिया था, जिससे तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान अकेले पड़ गए थे।
इसके बाद चाचा और भतीजे दोनों ने निर्वाचन आयोग के समक्ष अपने-अपने गुट को ”वास्तविक लोजपा’’ होने का दावा किया। आयोग ने लोजपा का चुनाव चिह्न सुरक्षित कर दिया और दोनों गुटों को अलग-अलग दल के रूप में मान्यता दी।
पारस के दल का नाम बाद में राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी रखा गया और उन्हें विभाजन के तुरंत बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल में स्थान भी मिला। हालांकि, पिछले वर्ष हुए लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा ने चिराग पासवान का साथ देने का फैसला किया, जिसके बाद पारस राजनीतिक रूप से हाशिये पर चले गए।

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