नयी दिल्ली, 6 नवंबर – व्यक्तिगत स्वतंत्रता की संवैधानिक गारंटी को और सशक्त करते हुए उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसमें कहा गया है कि प्रत्येक गिरफ्तार व्यक्ति को उसकी समझ में आने वाली भाषा में गिरफ्तारी के आधार की लिखित सूचना देना अनिवार्य होगा, चाहे अपराध की प्रकृति कुछ भी क्यों न हो।
प्रधान न्यायाधीश बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने यह निर्णय ‘मिहिर राजेश शाह बनाम महाराष्ट्र सरकार’ मामले में सुनाया। यह मामला जुलाई 2024 में हुए मुंबई के चर्चित बीएमडब्ल्यू हिट-एंड-रन हादसे से जुड़ा है, जिसमें गिरफ्तारी की वैधता को लेकर महत्वपूर्ण सवाल उठे थे।
संवैधानिक अधिकारों की पुनः पुष्टि
न्यायमूर्ति मसीह ने पीठ की ओर से 52 पृष्ठों का फैसला लिखते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 22(1) के तहत यह अधिकार केवल एक औपचारिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता की मौलिक सुरक्षा है। इस प्रावधान के तहत प्रत्येक नागरिक को यह गारंटी दी गई है कि यदि उसे गिरफ्तार किया जाता है, तो उसे यथाशीघ्र उसकी गिरफ्तारी के कारणों की जानकारी दी जाएगी।
पीठ ने कहा, “भारतीय दंड संहिता (1860), जो अब भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) 2023 के रूप में प्रभावी है, के तहत आने वाले सभी अपराधों में — चाहे वे किसी भी प्रकार के हों — गिरफ्तारी के आधार को लिखित रूप में सूचित किया जाना संवैधानिक आवश्यकता है।”
गिरफ्तारी को निरस्त नहीं करेगा विलंब, लेकिन लिखित सूचना जरूरी
हालांकि, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि गिरफ्तारी से पहले या तुरंत बाद लिखित सूचना न दिए जाने से वह गिरफ्तारी स्वतः अवैध नहीं मानी जाएगी। लेकिन यह अनिवार्य है कि ऐसी जानकारी “उचित समय के भीतर और किसी भी स्थिति में गिरफ्तार व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करने से कम से कम दो घंटे पहले” लिखित रूप में दी जाए।
इससे यह सुनिश्चित होगा कि गिरफ्तार व्यक्ति को उसके अधिकारों और गिरफ्तारी के कारणों की पूर्ण जानकारी हो तथा वह आवश्यक कानूनी सहायता प्राप्त कर सके।
अनुपालन न होने पर गिरफ्तारी अवैध मानी जाएगी
पीठ ने कहा कि यदि इस संवैधानिक प्रावधान का पालन नहीं किया जाता है, तो गिरफ्तारी और उसके बाद की रिमांड अवैध मानी जाएगी और संबंधित व्यक्ति को रिहा किए जाने का अधिकार होगा। अदालत ने कहा कि गिरफ्तारी की वैधता केवल प्रक्रिया पर आधारित नहीं है, बल्कि यह नागरिक की स्वतंत्रता की रक्षा से गहराई से जुड़ा मुद्दा है।
सभी राज्यों को भेजी जाएगी फैसले की प्रति
शीर्ष अदालत ने अपनी रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि इस फैसले की प्रति सभी उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरल और सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को तत्काल भेजी जाए ताकि निर्णय के निर्देशों का पालन सुनिश्चित किया जा सके।
‘व्यक्तिगत स्वतंत्रता सर्वोपरि’ – सर्वोच्च न्यायालय
अदालत ने यह भी कहा कि गिरफ्तारी की प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही आवश्यक है। न्यायमूर्ति मसीह ने कहा, “गिरफ्तारी एक गंभीर कदम है, जो किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है। ऐसे में यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि गिरफ्तार व्यक्ति को न केवल मौखिक रूप से बल्कि लिखित रूप में भी यह बताया जाए कि उसे क्यों गिरफ्तार किया जा रहा है, ताकि उसके पास कानूनी उपायों का उपयोग करने का अवसर रहे।”
